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अब विचार यह करना है कि कर्मबंध का परिणाम क्या होता है तथा कर्मबंध किन कारणों से होता है ? कर्म-बंध का परिणाम है- कर्मों के अनुरूप उनका फल भोगना, क्योंकि कर्म फल देने पर नीरस व निःसत्त्व हो जाते हैं, वे निर्जरित हो जाते हैं, कर्मफल भोगने के लिए पराश्रय आवश्यक है। पराश्रय प्राणी को पराधीनता में आबद्ध करता है जिसका परिणाम अंततोगत्वा दुःख ही होता है। आगे कर्म-बंध के कारण एवं निवारण पर वैज्ञानिक दृष्टि से विवेचन किया जा रहा है।
कर्म-बंध पराधीनता है । कर्मबंधन से मुक्ति ही पराधीनता से मुक्ति है । यह ही वास्तविक मुक्ति है । जिन कारणों व कार्यों से कर्म क्षय होते हैं व कर्मों का बंध रुकता है, वे साधन हैं, और जिन कारणों व कार्यो से कर्म बंध होता है वे असाधन हैं । असाधन दो प्रकार के होते हैं :- १. पाप और २. आश्रव । साधन तीन प्रकार के हैं:- (१) संवर (संयम) (२) निर्जरा ( तप) और (३) पुण्य ।
१ पाप - 'पातयति आत्मानं इति पापं' अर्थात् जो आत्मा का पतन करे, वह पाप है । पतन के कारण होते हैं भारीपन व आकर्षण शक्ति । कषाय के आकर्षण से कर्म - पुदगलों के दल खिंचकर आते हैं और आत्मा से संयुक्त हो जाते हैं जिससे आत्मा भारी हो जाता है, फलतः आत्मा का आध्यात्मिक क्षेत्र में पतन होता है । अतः आत्मा के अध: पतन की कारण कषाय या आसक्ति युक्त मन, वचन, काया की दुष्प्रवृतियाँ हैं । पाप की ये प्रवृतियाँ हिंसा, झूठ, चोरी, मैथुन, परिग्रह, संग्रहवृत्ति, क्षोभ, अहंत्व, वंचना, प्रलोभन, राग, द्वेष, कलह, विग्रह, संघर्ष, परदोष दर्शन, संकीर्णता, स्वार्थपरता, भोगरुचि, घृणा, विषय - कषाय, मिथ्यादर्शन आदि रूपों में व्यक्त होती है । पाप का प्रारम्भ सुखद एवं परिणाम दुःखद होता है । पापजनित सुख के भोगी को दुःख भोगना ही पड़ता है तथा पापजनित सुख भी आकुलतायुक्त होने से दुःख रूप ही होते हैं अतः पाप प्राणी का अहित करने वाला होने से अशुभ है। इसलिए पापकारी प्रवृत्तियों को अशुभयोग कहा गया है। अशुभयोगों में प्रधानता अशुभभावों की होती है । इसलिए पापों को अशुभभाव भी कहा जाता है ।
२ आश्रव - जिन कार्यों, कारणों व हेतुओं से कर्म आते हैं, उन्हें आश्रव कहते है। पाप रूप प्रवृत्तियाँ तो आश्रव हैं ही, साथ ही मिथ्यात्व, अविरति, प्रमाद, कषाय और अशुभयोग ये कर्म बंध के पाँच हेतु भी आश्रव ही कहे गये हैं । पाप प्रवृत्तियाँ तथा कर्मबंध के हेतु 'आश्रव' ही प्राणी को पराधीन बनाने वाले हैं तथा अहित व अकल्याण करने वाले हैं, उसे दुःखी बनाने वाले है' अतः असाधन हैं।
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जैतत्त्व सा