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अजीव तत्त्व का स्वरूप जो चेतना गुण से रहित हो, सड़न, गलन, विध्वंसन स्वभाव वाला हो, वर्ण, बंध, रस, स्पर्श से युक्त हो, ज्ञान-दर्शन उपयोग से हीन हो, जड़त्व युक्त हो, जीवत्व से विहीन हो उसे अजीव कहते हैं। अजीव के पाँच भेद
धम्मो अधम्मो आगासं कालो पुग्गल जंतवो। एस लोगुत्ति पण्णत्तो जिणेहिं वरदंसीहि।।
- उत्तराध्ययन अ. २८ गा.७ अर्थात् - धर्म, अधर्म, आकाश, काल और पुद्गल ये पांच अजीव द्रव्य तथा एक जीव द्रव्य को मिलाकर कुल छह द्रव्यरूप यह 'लोक' है। अजीव के भेदःधम्माऽधम्माऽऽगासा, तिअतिअ भेया तहेव अद्धाय।
खंध, देस पएस परमाणु अजीव चउदसहा। अर्थात् - धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय और आकाशस्तिकाय इन तीनों के स्कन्ध, देश और प्रदेश रूप से ९ भेद होते हैं। काल का एक भेद है एवं पुद्गल के स्कंध, देश, प्रदेश और प्रमाणु ये चार भेद हैं। ये सब मिलकर अजीव के १४ भेद हैं।
धम्माऽधम्मा पुग्गल, नह कालो पंच हुंति अजीवा। चलण-सहावो धम्मो, थिर-संठाणे अहम्मो य।। अवगाहो आगासं, पुग्गल जीवाण पुग्गला चउहा।
खंधा देस पएसा, परमाणू चेव नायव्वा।। अर्थ - धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, पुद्गलास्तिकाय और काल ये पांच अजीव द्रव्य हैं। जो चलने में सहायक निमित्त बनती है, वह धर्मास्तिकाय है। जो स्थिर होने में सहायक निमित्त बनती है, वह अधर्मास्तिकाय है। जो जीव और पुद्गल का स्थान देने में सहायक है वह आकाशास्तिकाय है। वर्तन-परिवर्तन काल का लक्षण है। पूरण, गलन, विध्वंसन गुणवाला पुद्गल है।
आधुनिक विज्ञान में 'ईथर' द्रव्य में और धर्मास्तिकाय में समानता है। विज्ञान जगत में आकर्षण शक्ति का एक रूप, गुरुत्वाकर्षण का क्षेत्र सामने आया है जिसमें [16]
जैनतत्त्व सार