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स्पर्श में अथवा स्वयं के वर्णादि में परिवर्तित होता रहता है। विज्ञान में द्रव्य की तीन अवस्थाएं स्वीकार की गई है- ठोस, द्रव्य और गैस । एक द्रव्य 'जल' पर्याय परिवर्तन के कारण तीनों अवस्थाओं को ग्रहण कर सकता है। बर्फ की पर्याय में वह ठोस, जल की पर्याय में द्रव्य तथा भाप की पर्याय में गैस अवस्था को धारण कर लेता है।
पुद्गल की शक्ति भी पुद्गल की एक पर्याय है। उसमें भी द्रव्यमान होता है। कर्म के रूप में पुद्गलों का ही आत्मा से बंध होता है। बंध में स्निग्धता एवं रूक्षता को जैनदर्शन निमित्त मानता है तो विज्ञान में धन विद्यत एवं ऋण विद्युत स्वीकार की गई है। पुद्गल में गतिशीलता, अप्रतिघातित्व, परिणामी-नित्यत्व आदि विशेषताओं का उल्लेख करने के साथ श्रीयुत लोढ़ा सा. ने शब्द, अन्धकार, उद्योत, छाया, आतप आदि पौद्गलिक पर्यायों का भी विस्तार से वैज्ञानिक प्रतिपादन किया है।
इस प्रकार यह पुस्तक जैन दर्शन के अनुरूप जीव एवं अजीव द्रव्यों का प्रतिपादन करने के साथ विज्ञान से उनकी तुलनात्मक महत्ता भी प्रस्तुत करती है। इसमें अनेक रोचक वैज्ञानिक तथ्यों एवं प्रयोगों की भी चर्चा है, फलतः यह पाठकों का ज्ञानवर्द्धन करने के साथ चिन्तन एवं अनुसंधान की एक नई दिशा प्रदान करती है, जिससे विज्ञान एवं आगम के पारस्परिक अध्ययन का द्वार खुलता है, जो युग की मांग के अनुकूल है।
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जैनतत्त्व सार