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जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास
पूर्णरूपेण विश्वास नहीं किया जा सकता । चूंकि इनके संकलन या रचना में किंवदन्तियों एवं अनुश्रुतियों के साथ-साथ कदाचित् तत्कालीन रास-गीत-सज्झाय आदि का भी उपयोग किया जाता है इसीलिए इनके विवरणों पर पूर्णतः अविश्वास भी नहीं किया जा सकता है और इनके उपयोग में अत्यधिक सावधानी की आवश्यकता पड़ती है।
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पट्टावलियाँ मुख्य रूप से दो प्रकार की होती हैं । प्रथम शास्त्रीय पट्टावली और दूसरी विशिष्ट पट्टावली । प्रथम प्रकार में सुधर्मास्वामी से लेकर देवर्धिगणि क्षमाश्रमण तक का विवरण मिलता है । कल्पसूत्र और नन्दीसूत्र की पट्टावलियाँ इसी कोटि में आती हैं। गच्छ-भेद के बाद विविध पट्टावलियाँ विशिष्ट पट्टावली की कोटि में रखी जा सकती हैं । इनकी अपनी-अपनी विशिष्टताएँ होती हैं ।
पट्टावलियों में मुख्य रूप से पट्टधर आचार्यों का ही विवरण मिलता है । अन्य आचार्यों का नहीं । कहीं-कहीं प्रसंगवश उनके गुरुभ्राताओं का भी नामोल्लेख मिल जाता है । इनके द्वारा ही आचार्य परम्परा अथवा गच्छ का क्रमबद्ध पूर्ण विवरण प्राप्त होता है, जो इतिहास की दृष्टि से अत्यन्त महत्वपूर्ण है । श्वेताम्बर परम्परा में विभिन्न गच्छों की जो पट्टपरम्परा मिलती है, उसका श्रेय पट्टावलियों को ही है ।
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पट्टावलियों के कई संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं, इनमें मुनिदर्शनविजयजी द्वारा सम्पादित पट्टावलीसमुच्चय भाग १ - २, मुनि जिनविजयजी द्वारा सम्पादित विविधगच्छीयपट्टावलीसंग्रह, मुनि कल्याणविजय गणि द्वारा सम्पादित पट्टावलीपरागसंग्रह उल्लेखनीय हैं। स्व. मोहनलाल दलीचंद देसाई जैन गूर्जर कविओ (नवीन संस्करण संपा. डॉ. जयन्त कोठारी,) भाग ९ में भी विभिन्न गच्छों की पट्टावलियों प्रकाशित की हैं। प्रस्तुत पुस्तक में उन सभी का यथास्थान उपयोग किया गया है ।
अभिलेखीय साक्ष्य
श्वेताम्बर सम्प्रदाय के विभिन्न गच्छों से सम्बद्ध अभिलेखीय साक्ष्य मुख्य रूप से दो प्रकार के हैं १. प्रतिमालेख, २. शिलालेख ।
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