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गच्छों के इतिहास के मूल स्रोत
No. 139, 149, Baroda 1961-1966 A.D.
5. A.P. Shah, Catalogue of Sanskrit & Prakrit Mss. Muni Shree Punya Vijayjis collection, Vol. I, II, III, L.D. Series No. 2, 6, 16. Ahmedabad 1962, 1965, 1968 A.D.
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6. A. P. Shah, Catalogue of Sanskrit & Prakrit Mss. Ac. Vijaydevsuris and Ac. Ksantisuris collection, Vol. IV., L.D. Series, No. 20, Ahmedabad 1968 A.D.
7. Muni Pujya Vijaya, New Catalogue of Sanskrit & Prakrit Mss. Jesalmer collection, L.D. Series No. 36, Ahmedabad 1972 A.D.
8. Vidhatri Vora, Catalogue of Gujarati Mss in the Muniraj Shree Punya Vijayji's collection, L.D. Series No. 70, Ahmedabad 1978 A.D.
९. अमृतलाल मगनलाल शाह, सम्पा० श्रीप्रशस्तिसंग्रह, श्री जैन साहित्य प्रदर्शन, श्री देशविरति धर्माराधक समाज, अहमदाबाद वि. सं. १९९३. १०. मुनि जिनविजय, सम्पा० जैनपुस्तकप्रशस्तिसंग्रह, सिंघी जैन ग्रन्थमाला, ग्रन्थांक-१८, भारतीय विद्याभवन, मुंबई १९४३ ई ..
पट्टावलियाँ
श्वेताम्बर गच्छों के इतिहास लेखन में उपरोक्त साक्ष्यों की भाँति पट्टावलियों का भी महत्वपूर्ण स्थान है। श्वेताम्बर जैन मुनिजनों ने इनके माध्यम से इतिहास की महत्वपूर्ण सामग्री प्रस्तुत की है। शिलालेख, प्रतिमा लेख और ग्रन्थ- प्रशस्तियों से केवल हम इतना ही ज्ञात कर पाते हैं कि किस काल में किस मुनि ने क्या कार्य किया । अधिक से अधिक उस समय के शासक एवं मुनि के गुरु- परम्परा का ही परिचय मिल पाता है । किन्तु पट्टावली में अपनी परम्परा से सम्बन्धित पट्ट परम्परा का पूर्ण परिचय होता है । फिर भी इनमें किसी घटना विशेष के सम्बन्ध में अथवा किसी आचार विशेष के सम्बन्ध में प्रायः अतिशयोक्तिपूर्ण विवरण ही मिलते हैं। अत: ऐतिहासिक महत्व की दृष्टि से इनकी उपयोगिता पर
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