________________
मथुरा के इन लेखों में उक्त गर्यो, कुलों एवं शाखाओं के सिवाय अनेकों आचार्यों के नाम श्राते हैं जो कि वाचक श्रादि पद से विभूषित थे । श्वेताम्बर श्रागम नन्विसूत्र में एक वाचक वंश की पट्टावली दी हुई है, जिसके अनेकों नामों का मिलान शिलालेखों के नामों से किया जा सकता है। उक्त पट्टावली में सुधर्म गणधर की परम्परा को आगे बढ़ाते हुए ७वें श्रार्य स्थूलभद्र के शिष्य सुहस्ति से चलने वाले वाचक वंश का वर्णन है जो कि वीर निर्वाण सं० २४५ से लेकर ६६४ तक अर्थात् ई० पूर्व २८२ से लेकर सन् ४६७ तक चलता रहा । उक्त वंश में ही श्रार्य देवर्धि क्षमाश्रमण हुए थे जिन्होंने वर्तमान श्वेताम्बर श्रागमों को अन्तिम रूप दिया था। उक्त पट्टावली में गण, कुल एवं शाखाओं का नाम बिल्कुल नहीं दिया । संभव है वहाँ गण, कुल शाखादि को महत्त्व न दे वाचक पदधारी श्राचार्यों का नाम ही गिनाया गया है। जो भी हो, यहाँ उक्त पट्टावली और लेखों के कुछ नामों में काल दृष्टि से साम्य प्रकट किया जाता है । १३ -- श्रार्य समुद्र, वीर नि० सं०... महावाचक, गणि समदि १४ - श्रार्य मंगु', ૪૬૭૨ १५ -- श्रार्य नन्दिल क्षमण
(ले० नं०५२)
35
गणि मंगुहस्ति श्रानन्दिक
गणी नन्दी
(,,६७)
१६ – आर्य नागइस्ति (,, ६२० - ६८६) वाचक श्रार्य घस्तुहस्ति (,, ५४ )
(, ५४ )
(,,४१ )
१ --मुनि दर्शनविजय, पट्टावली समुच्चय, भा० १ पृष्ठ १३ पर श्रार्य मंगुकी गाथा के अनन्तर दो प्रक्षिप्त गाथाएं श्राती है, जिनमें अज्जधम्म, भद्रगुप्त, श्रज्जवयर, अज्जरक्खित के नाम श्राते हैं ।
२ - वही, पृष्ठ ४७, तपागच्छपट्टावली । इस पट्टावली का रचना काल विक्रम सं० १६४६ है ।
३ - वही, पृष्ठ १६, 'सिरि दुधमाकाल समणसंघथयं' नामक पट्टावली का