Book Title: Jain Shasan
Author(s): Sumeruchand Diwakar Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 13
________________ धर्म के नामपर धर्मके नामपर आत्म-साधना द्वारा कल्याण मंदिर में दुःखी प्राणियोंको प्रविष्ट कराने की प्रतिज्ञापूर्वक प्रचार करनेवाले व्यक्तियोंके समुदायको देखकर ऐसा मालूम होता है कि यह जीव एक ऐसे बाजार में जा पहुँचा है जहाँ अनेक विज्ञ विक्रेता अपनी प्रत्येक वस्तुको अमूल्य-कल्याणकारी बता उसे बेंचनेका प्रयत्न कर रहे हैं । जिस प्रकार अपने मालकी ममता तथा लाभके लोभवश व्यापारी सत्य सम्भाषणकी पूर्णतया उपेक्षा कर वाक् चातुर्य द्वारा हतभाग्य ग्राहकको अपनी ओर आकर्षित कर उसको पठिषः प्रकास करते है, सवार प्रतीत होता है कि अपनी मुक्ति अथवा स्वर्गप्राप्ति आदिकी लालसावश भोले-भाले प्राणियों के गले में साधनामृतके नामपर न मालूम क्या-क्या पिलाया जाता है और उसकी श्रद्धा-निधि मूल की जाती है। ऐसे बाजार में बोखा खाया हुआ व्यक्ति सभी विक्रेताओंको अप्रामाणिक और स्वार्थी कहता हुआ अपना कोप व्यक्त करता है । कुछ व्यक्तियों की अप्रामाणिकताका पाप सध तथा प्रामाणिक व्यवहार करनेवाले पुरुषोंपर लादना यद्यपि न्यायकी मर्यादाके बाहरकी बात है, तथापि उगाया हुआ व्यक्ति रोपवश यथार्थ का दर्शन करने में असमर्थ हो अतिरेकपूर्ण कदम बढ़ाने से नहीं रुकता । ऐसे ही रोष तथा आन्तरिक व्यथा को निम्नलिखित पंक्तियों व्यक्त करती हैं ५ "ने मनुest feaना नीचे गिराया, कितना कुकर्मी बनाया, इसको हम स्वयं सोचकर देखें | ईश्वरको मानना सबसे पहले बृद्धिको सलाम करना है । जैसे शराबी पहला प्याला पीने के समय बुद्धिकी बिदाईको सलाम करते है, वैसे हो खुदा माननेवाले भी बुद्धिसे बिदा हो लेते हैं। धर्म ही हत्या की जड़ है । कितने पशु धर्म के नामपर रक्त के प्यासे ईश्वरके लिए संसार में काटे जाते हैं, उसका पता लगाकर पाठक स्वयं देख लें । समय आवेगा कि धर्मकी बेहूदगी से संसार छुटकारा पाकर सुखी होगा और आपसकी कलह मिट जाएगी। एक अत्याचारी, मूर्ख शासक खुदमुख्तार एवं रही ईश्वरकी कल्पना करना मानो स्वतन्त्रता, न्याय और मानवधर्मको तिरस्कार करके दूर फेंक देना है। यदि आप चाहें कि ईश्वर आपका भला करें तो उसका नाम एकदम भुला दें फिर संसार मंगलमय हो जाएगा । "वेद, पुराण, कुरान, इंजील आदि सभी धर्मपुस्तकोंके देखनेसे प्रकट है कि सारी गाथाएँ वैसी हो कहानियाँ है जैसी कुपक बूढ़ी दादी-नानी अपने बच्चों को सुनाया करती हैं। बिना देखे सुने, अनहोने, लापता ईश्वर या खुदाके नामपर अपने देशको, जातिको, व्यक्तित्व और मन-सम्पत्तिको नष्ट कर डालना, एक ऐसी

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