Book Title: Jain Shasan
Author(s): Sumeruchand Diwakar Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 11
________________ शान्तिकी ओर इस प्रताप पुरुषने इतना बहुमूल्य संग्रह किया जो प्रेक्षकोंके घिसमें विशेष व्यामोह उत्पन्न कर देता है। किन्तु फिर भी यह शासक कुछ भी सामग्री साथ नहीं ले जा रहा है । ऐसे सजीव तथा उद्बोधक उदाहरणसे यह प्रकाश प्राप्त होता है कि बाह्य पदार्थोंमें सुखको धारणा मूलमें ही भ्रमपूर्ण है । प्यासा हरिण ग्रीष्ममें पानी प्राप्त करने की लालसा मा भमिमें बिजी दौन नहीं जाता. किन्तु मायाविनी मरीचिकाके भुलाधेमें फंसकर वृद्धिगत पिपासासे पीड़ित होता है और प्यार पानी के पास पहुँचनेका सौभाग्य ही नहीं पाता-उसकी मोहिनीमूरत ही नयम-गोचर होती है. पुरुषार्थ करके ज्यों-ज्यों आगे दौड़ता है, वह नयनाभिराम वस्तु दूर होती जाती है । इसी प्रकार भौतिक पदार्थों के पीछे दौड़नेवाला सुखाभिलाषी प्राणी वास्तविक आनन्यामृत के पानसे वंचित रहता है और अन्त में इस लोकसे विदा होते समय संग्रहीत ममताकी सामग्रीके वियोगव्यथासे सन्तप्त होता है। ऐसे अवसरपर सत्-पुरुषों की मार्मिक शिक्षा हो स्मरण आती है "रे जिय, प्रभु सुमिरन में मन लगा लगा। लाख करोर की धरी रहेगो, संग न जइहै एक तगा।" इस प्रसंगमें विद्या प्रेमी नरेश भोजका जीवन-अनुभव भी विशेष उद्योधक है । कहते हैं, जब महाराज अपनी सुन्दर रमणियों, स्नेही मित्रों, प्रेमी बन्धुओं, हार्दिक अनुरागी सेवकों, हाथी-घोहे आधिको अपूर्व सवीगीय आनन्ददायिनी सामग्रोको देखकर अपने विशिष्ट सौभाग्यपर उचित अभिमान करते हुए अपने महाकविसे हृदय की बातें कर रहे थे, तब महाराज भोजके भ्रमको भगानेवाले तथा सत्यकी तहतक पहुंचनेवाले कवि के इन शब्दोंने उनको आँख खोल दी-''ठीक है महाराज, पुण्य-उदयसे आपके पास सब कुछ है, लेकिन यह तबतक ही है जबतक आपके नेत्र खुले हुए हैं। नेत्रोंके बन्द होने पर यह कहाँ रहेगा।" महाकवि भूषरवास मोकी निम्न पंक्तियो अन्तस्तल तक अपना प्रकाश पहुँचा वास्तविक मार्ग-दर्शन करातो हैं"तेज तुरंग सुरंग भले रथ, मत्त मतंग उतंग खरे ही। दास खवास अवास अटा धन, जोर करोरन कोश भरे ही ।। ऐसे भये तो कहा भयौ हे नर ! छोर चले जब अंत छरे ही । धाम खरे रहे काम परे रहे, दाम गरे रहे ठाम धरे ही ।।" -जनशतक ३३ । १. "तोहरा युवतयः सुहृदोऽनुकूलाः, सद्दान्धवाः प्रणयगर्भगिरश्च भृत्याः । वलान्ति दन्तिनिवहा तरलास्तुरंगाः, सम्मीसित नयनयोनहि किञ्चिदस्ति ।"

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