Book Title: Jain Dharm me Tap Swarup aur Vishleshan
Author(s): Mishrimalmuni, Shreechand Surana
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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[ २१ ] योगनिष्ठ मुनि श्री फूलचद जी 'श्रमण'
'जैन धर्म में नप स्वस्प बोर विनवम' पुस्तक देगी, अपूर्ण पुस्तपा (एपे हुए ४०० पेज) ने भी मुझे पूर्ण भान करा दिया अपने स्वरुप का, अपने विषय ना, अपनी प्रतिपादन पानी का एव अपनी विश्लेषण को गम्भीरता का।
गाय शान के आधार पर मनुप कुछ लिग सकता है, परन्तु स्पानुभूति गी चराभूमि मे रहित होते ये धारण कर अभिब्यक्ति के गोप्य को प्राप्त नहीं कर सपना । श्री मगर कमी पी मिोगल जी महाराज एक तरी मन्त है, अतः उनके मुग में नए गे विषय में जो भी प्रष्ट होना या म्यानुगृति यो उपभूमिका में उदान होता है, लोरमा ही हमा है। नप पागलीन वित्त
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लेपन मे गम्भीरता का मामी, मह नगगि नियम है. परन्तु भाषा में अभियक्ति मानना नो लपनामती है। श्री मम्मी जी महाराज - पं F में जो विना है, या सरर नही, गरम और उस ताप्रति आTTTTTTri
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