Book Title: Jain Darshan me Trividh Atma ki Avdharana
Author(s): Priyalatashreeji
Publisher: Prem Sulochan Prakashan Peddtumbalam AP
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* मंगल कामना *
श्रुतोपासिका...आत्मप्रिय...बहना प्रियलता श्रीजी
आत्मिय भावेन...सह...अनुमोदन... शोधग्रंथ प्रकाशन की सुनहरी घड़ियाँ आई है। मनांगन में उत्सव उमंग की अपूर्व रंगोली छाई है। दीर्घ श्रमशीलता लगनशीलता का साक्षात् परिणाम पाया है। सहज सरल सुबोध शैली से इस ग्रंथ को संजोया है। गुरुवर्याश्रीजी की असीम कृपा से, अपनी प्रतिभा को निखारा है। शाजापुर में विद्वत् शिरोमणि डॉ. सागरमलजी का निर्देशन मिला है। प्रांजल लेखनी निरंतर प्रवाहित कर पीएच.डी. का सपना साकार किया है। त्रिविध आत्मा ग्रंथ निर्माण कर, कार्यनिष्ठा का परिचय दिया है। इस पावन प्रसंग पर हम देते, तुम्हें तहे दिल से बधाई हैं। बचपन जीवन साथ-साथ रहकर, संयम में भी साथ निभाया है। स्वास्थ्य अस्वस्थ रहते हुए भी अध्ययन निमग्न तुम्हें पाया है। गहरे आत्मविश्वास से आगे बढ़कर, अध्यात्म धरा का स्पर्श किया है। संयम साधना ज्ञानाराधना कर, जीवन को प्रगतिशील बनाया है। स्व पर कल्याण कर त्रिविधात्मा ग्रंथ में अनहद आनंद पाया है।
बधाई की मंगल घड़ियों में भगिनी मंडल शुभ कामना करती है।
आत्महितेषु साध्वी श्री प्रियस्मिताश्री साध्वी श्री प्रियवंदनाश्री एवं समस्त साध्वी भगिनी मंडल
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