Book Title: Jain Darshan me Trividh Atma ki Avdharana
Author(s): Priyalatashreeji
Publisher: Prem Sulochan Prakashan Peddtumbalam AP
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* संपादकीय *
शोध प्रबन्ध का संपादन सरल भी है, विषम भी । 'जैन दर्शन में त्रिविध आत्मा की अवधारणा' शोध प्रबन्ध के संपादन में अनिर्वचनीय आनन्द की अनुभूति हुई। वर्तमान में बहिर्मुखी इन्सान का अन्तरमुखी होना सुखी जीवन के लिये कितना आवश्यक है और उस स्थिति को किन माध्यमों से पाया जा सकता है, पूज्या साध्वीजी ने अपने मौलिक सोच को, अनेकों ग्रन्थों के संदर्भों से, सरलता से समझाने का सराहनीय प्रयास किया है।
एक आत्मा का विविध दृष्टिकोणों से विचारना और फिर उसमें ही स्थित हो जाना - निर्द्वद, निरपेक्ष भाव का स्थिरीकरण ही मोक्ष की सम्यग् राह है।
विभाव से स्वभाव में आना और स्वभाव को अप्रमत्त प्रयास पूर्व पल्लवित और पुष्ट करते रहना ही बहिर्गमन से अन्तरगमन और अन्तरगमन से परमगमन की यात्रा है।
साध्वीजी ने अनेकों सिद्धांतों के माध्यम से मुक्त जीवन का राज दर्शाया है। उनकी रूचि सतत ज्ञान अभिवृद्धि में कारण बने, यही अन्तरमन की अभिलाषा...
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डॉ. ज्ञान जैन, B.Tech., M.A., Ph.D. 37, पेरूमाल मुदली स्ट्रीट, चेन्नई - 600079.
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