Book Title: Gurvavali
Author(s): Munisundarsuri
Publisher: Yashovijay Jain Pathshala

View full book text
Previous | Next

Page 10
________________ श्रीमुनिसुन्दरसूरिविरचिता गुर्वावली। जयश्रियं रातु जिनेन्द्रचन्द्रमाः ___ स वईमानप्रभुरद्भुतां सताम् । निजाभिधानानुगुणास्तनोति यः स्तुतक्रमः प्रार्थितसौख्यसम्पदः ॥१॥ पदारविन्दं सकलेष्टसाधकं __ प्रणम्य तस्यैव जगत्प्रभोर्मुदा । तदीयसन्तानकियद्गुरुक्रम स्तवेन कुर्वे स्ववशाः शिवश्रियः॥२॥ शिवानि तस्यादिमशिष्यनायक__ स्तनोतु सङ्घाय स गौतमो गुरुः । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 ... 122