Book Title: Gurvavali
Author(s): Munisundarsuri
Publisher: Yashovijay Jain Pathshala

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Page 9
________________ प्रस्तावना । महामहिमपरमोदारचरितसहृदयसभासभाजनश्रीधर्मसागरोपाध्यायविरचिततपागच्छपट्टावलीनामग्रन्थाच्चेमे आचार्या विशदस्वभावा लोकोत्तरकार्यविधौ पटवोऽलौकिकज्ञानशालिनः सर्वजनताराध्यपादपद्मा आजन्मतः परोपकारपारावारदृश्वानः सूरिमन्त्रमन्त्रितात्मानो बभूवुरिति निश्चीयते,। __अतस्तत् प्रणीतगुर्वावलीनामकमनन्तपुण्यानुबन्धिनममुं ग्रन्थं सर्वेषां साधुश्रावकाणामत्यन्तोपकारकत्वेन मुद्रणयन्त्रोपर्यास्थापयामः सानुनयं प्रार्थयामश्चैतत्ग्रन्थमुद्रणसमये महतायासेन पुस्तकद्वयमेव संगृह्य शोधनार्थमत्यन्तं यत्नो विहितः परन्तु दृष्टिदोषवशात् स्यात् क्वचित् स्खलितं तत्प्रेक्षावद्भिः स्वयमाकलय्य परिशोधनीयमिति । श्रीयशोविजयजी जैनपाठशाला, बनारस। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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