Book Title: Gaharayankosa
Author(s): Jineshwarsuri, Amrutlal Bhojak, Nagin J Shah, Dalsukh Malvania
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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सिरिजिणेसरसूरिविरइओ अद्धक्खरभणियाई नूर्ण सविलासअद्धहसियाई । अद्धच्छिपेच्छिआई विगाहाहिं विणा न नज्जति ॥२८॥ अइचंपियं विणस्सइ दंतच्छेएण होइ विच्छायं । ढलहलयं विय मुच्चइ पाइयकव्वं च पिम्मं च ॥२९॥
७. अथ समुद्रप्रक्रमः रयणेहिं निरंतरपूरियस्स रयणायरस्स न हु गव्यो । करिणो मुत्ताहलसंसए हि मयभिभला दिट्ठी ॥३०॥ रयणायरस्स न हु होइ तुच्छिमा निग्गएहिं रयणेहिं । तह वि हु चंदसरिच्छा विरला रयणायरे रयणा ॥३१॥ जइ कहव अनिम्महिओ दितो तियसाण रयणसंघायं । ता तिहुयणे वि उवमा न होज्ज मन्नं(? न्ने) समुदस्स ॥३२॥ तुहिणकरसीयलो च्चिय वडवानलडज्झिओ वि मयरहरो। न मुणिज्जंति वहंता गंगोद.... ...........॥३३॥ ते अइगहिरा फुडफेणपंडुरा गाहगज्जिररउद्दा । सायरअयत्थिहत्थे(?) कत्थ गया तुह तरंगोहा ? ॥३४॥ जलणं जलं च अमियं विसं च कण्हं सदाणवं चेव । उयरे धरंत ! मयरहर ! तुज्झ महिम च्चिा अपुव्वो ॥३५॥ साहीणामय-रयणे अमरमरोरं च भुवणमकुणंतो। उल्लसिरेहिं न लज्जसि लहरी हि तरंगिणीनाह ! ॥३६॥ इयरो गामतलाओ पूरिज्जइ पूयराण नियरेण ।। घणमच्छ पुच्छघायं पुणो वि रयणायरो सहइ ॥३७॥ वारं वारं विणिवारिआ वि रेवा न सायरं मुयइ । अहवा सव्वसलूणे पियम्मि को रूसिउं तरइ ? ॥३८॥ हिययनिवेसियवडवानलो वि विसकुलहरं पि जलरासी।
रयणायरु त्ति लंभइ पेच्छ पसिद्धीए माहप्पं ॥३९॥ १. “सो सुमित्त अवसरि जे आवे, सा सुंदरि जा पिभर सुहावे । सा लच्छी जा दित न खुट्टे, सो हु कवित्त जो हिययचहुटे ॥१॥"
इति प्रती टिप्पणी ॥
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