Book Title: Gaharayankosa
Author(s): Jineshwarsuri, Amrutlal Bhojak, Nagin J Shah, Dalsukh Malvania
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 25
________________ सिरिजिणेसरसूरिविरहओ चावगुणाणं दुण्हं रेहंति महाणुभावचरियाई । ऊहरसमुण्णयाणं कोडीओ दिंत-लिताणं ॥७९॥ सहइ समूलाण समुण्णयाण बहुसउणसत्थनिलयाण । सप्पुरिसाण दुमाण व परोवयारप्फला रिद्धी ॥८॥ सो जयउ जेण सुयणा वि दुज्जणा इह विणिम्मिया भुवणे। न तमेण विणा पावंति चंदकिरणा वि परभागं ॥८१॥ तं परिवड्ढंति खणं खणं पि निवसति जत्थ सप्पुरिसा । जाओ कलिम्मि जस्सि तई उण सो चेव निविभो ॥८॥ कलहंताण वि न हु निग्गयाई, हियए जरं अइगयाइं । सुयणकयाइं रहस्साइं दहइ आउक्खए अग्गी ॥८३॥ खज्जति टस त्ति न भंजिऊण, पिज्जंति नेय धुंटेहिं । तह वि हु कुणंति तित्ति आलावा सज्जणजणस्स ॥८४॥ ईसि पि न लक्खिज्जइ सुत्तं हारेसु मुत्तिउत्थइयं । मुगुणा वि गुणभहिएहिं अंतरिति किं चोज्जं ? ॥८५।। कलिकालकवलनोव्वरियमुपुरिसा संति कत्थ व पएसे । बीयं व कयजुयत्थे अज्ज वि परिरक्खियं विहिणा ॥८६॥ पसमियसोहाससहरस्सऽल्लीणस्स बंकिमा जं से (?) । रिद्धीसु पंजला होति सुपुरिसा, न य विवत्तीसु ॥८७॥ विरला उवयरिऊणं निरवेक्खा जलहर व्य वच्चति । झिज्झंति ताण विरहे विरल च्चिय सरिपवाहो व्व ॥८८॥ अस्थि(संति) असंखा संखा धवला रयणायरुब्भवा भुवणे । न हु ताण सद्दलद्धी जाया जा पंचजण्ह(?ण्ण)स्स ॥८९॥ छिन्नाण सोसियाण य दाहं पत्ताण छिद्दभरियाण । अहममुहदूसियाण वि सुहो उ सदो सुवंसाणं ॥९०॥ हियए जाओ, न(?नो) चेव पसरिओ, नेय पयडिओ लोए । ववसायपायवो सुपुरिसाण लक्खिज्जइ फलेहिं ॥११॥ न हु महुमहस्स वच्छे, मत्थे कमलाण, नेय खीरोए। . ववसायपायवे सुपुरिसाण लच्छी फुडं होई ॥१२॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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