Book Title: Gaharayankosa
Author(s): Jineshwarsuri, Amrutlal Bhojak, Nagin J Shah, Dalsukh Malvania
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 89
________________ ७२ सुभासियगाहासंगहो कसिणोज्जलो विरायइ वेणीदंडो नियंव विधम्मि । तुह सुंदरि ! सुरयमहानिहाणरक्खाभुअंगो व्य ॥७०॥ कह तम्मि निव्वविज्जइ दुक्खं दुक्खुद्धएण हियएण । अदाए पडिबिवं व जम्म(म्मि) दुक्खं न संकमइ ॥७१॥ अत्थवणं पहरपरब्यसाणे जइ होइ, होउ, को दोसो ? । जं पुण मुच्चइ तेओ सूराण न एरिसं जुत्तं ॥७२॥ पच्छाभिमुहो वच्चई पहरहओ अंबरं विमोत्तण । तह वि हु भन्नइ सूरो पेच्छ पसिद्धीए माहप्पं ॥७३॥ खडिज्जतो वि ससी अवमाणं सहइ पुन्निमा जाव । सूरो पयावहरणे अत्थमइ, न खंडणं सहइ ॥७४॥ गयणगणपरिसक्कणखंडणदुक्खाई सहसु अणुदियह । न सुहेण हरिणलंछण! कीरइ जयपायडो अप्पा ॥७५।। अन्न च्चिय सा जाई जीए फलं होइ सुरहिगंधड्ड । एसा कुसुमे च्चिय नवरि सुंदरो विहडइ फलम्मि ॥७६।। एक्केण वि तीरतडटिएण हंसेण होइ जा सोहा । सा सरवरं न पावइ बह एहिं वि ढिक्कसत्थेहिं ॥७७॥ जह हंसो माणससरवियंभियं देइ ललियपयमग्गं । तह किं बो वराओ जाण इ चलणं पि उक्खणिउं ? ॥७८॥ जह बरहिणस्स छज्जइ विहुयकलावस्स महुरकेयरवो । तह वायसस्स कत्तो दियहं पि वणे सरंतम्स ? ॥७॥ उप्पयइ गयणमग्गे, भंजइ कसिणत्तणं, पयासेइ । तह वि हु गोब्बरईडो न पावए भमरचरियाई ॥१०॥ अविरयरयकेलिपसंगसोक्खसम्भावईसिकुंठइयं । माणनिसाणयनिसियं होइ पुणो अहिणवं पेम्मं ॥८१॥ निव्वत्तसुरय! जं परमुहत्तणं सुहय ! सिक्खिओ कत्थ ? । अह मुणयाण पसंगे, अह मुणया तुह पसंगाओ ॥८२॥ पेच्छह पवरवहणं सुरए चलणाण जेरिसो मग्गो । नज्जइ बभंडपडतयस्स ओक्खंभणा दिन्ना ॥८३।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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