Book Title: Gaharayankosa
Author(s): Jineshwarsuri, Amrutlal Bhojak, Nagin J Shah, Dalsukh Malvania
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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७०
सुभासियगाहासंगहो अत्ताणं चिय दुहरं जाण जए तेहिं किं व जाएहि १ । सुसमत्था जे न परोवयारिणो तेहि वि न किंचि ॥४२॥' उवयारो कीरइ खलयणस्स जो फुसइ तक्खण च्चेव । सुअणो उवयारमहब्भरेण दुक्ख समुन्वहइ ॥४३॥ दो पुरिसा धरउ धरा, अहवा दोहिं पि धारिया धरणी। उवयारे जस्स मई, उवयरियं जो न पम्हुसई ॥४४॥ जइ मंडलेण भसियं हत्थिं दद्रूण हट्टमज्झम्मि । ता किं गयस्स जुज्जइ सुणहेण समं कलिं काउं? ॥४५॥ पडिवयणसमत्थेण वि सहियव्यं दुज्जणस्स सुयणेण । न य पिट्टम्मि निलीणो वसहस्स सिरिं हरइ काओ ॥४६॥ उक्खणइ णइनियइं(?) पवणो नाऊण तुच्छमूलाई । मूलेइ महल्लतरू गरुया गरुयं विरोहंति ॥४७॥ गरुयाणं गरुय च्चिय उवयारं जइ करंति न हु अन्नो। को उल्हवेइ विझं मेहेण विणा पलिप्पंतं ? ॥४८॥ रूसंति दुहवा सूहवाण, धणइत्तयाण दालिद्दा । पंडियजणाण मुक्खा, असईओ सईण रूसंति ॥४९॥ दीसंतो अमयमा लोअण-मणनंदणो इमो एको । बिसदलनिम्मियदेहो एसो पुण दुहवो अन्नो ॥५०॥ मुहराओ चिय भन्नइ जो जस्स पिओ किमत्थ भणिएण ?। पंगणयं चिय साहइ घरस्स अभितरं लच्छिं ॥५१॥ जाईसराई मन्ने इमाई नयणाइं होंति लोयस्स । वियसंति पिए दिटे, अव्वो! मउलंति वेसम्मि ॥५२॥ अणुरायनिब्भरं पि हु पेम्म माणेण जाइ सयखंडं । विप्पि(?च्चि)यजलणालिद्धं तडयडसदेण लोणं व ॥५३॥ असणेण पिययम ! सुट्ठ वि नेहाणुरायरसियाई । हत्थउडपाणियाई व कालेण गलंति पेम्माइं ॥५४॥ हियए चित्तत्तिन्ने वियलियनेहे पणट्ठसब्भावे । अब्भत्थणाए पेम्मं कीरंतं केरिसं होइ ? ॥५५॥ १. एतदनन्तरमिमा गाथा टिप्पणीरूपेण लेख कलिखिताऽस्ति "तेहि वि न किंचि भणिए विकम।एण देव ! तुटेण । दिण्ण मायंगसयं कोडी हेमस्स जच्चस्स ॥"
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