Book Title: Gaharayankosa
Author(s): Jineshwarsuri, Amrutlal Bhojak, Nagin J Shah, Dalsukh Malvania
Publisher: L D Indology Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 93
________________ सुभासियपज्जसंगहो किं भणिमो नवजुवईण ताण सव्वंगचंगिमसुहस्स । दिट्ठीतिभायफंसे वि जाणममयं पि हु न किपि ॥१॥ गयनेवच्छा वच्छे ! अइदुसहा तं सि तरुणनयणाण । वम्महकरसंगहिया निप्पडियार व्व खग्गलया ॥२॥ दिट्ठीए तस्स ससहरकरसलिलज्झलझलासलोणाए । बाला ससिमणिधीउल्लिय व्य सेउल्लिया जाया ॥३॥ नवसंगरंगनट्टावएण नच्चाविया तहा अहयं ।। मामि ! महं चिय हिययं न विम्हयं जेण पम्हुसइ ॥४॥ अमयमओ वि हु दाहं जणेइ, संजीवणो वि मोहेइ । मउओ वि विधइ मणं, दिहिच्छोहो मयच्छीणं ॥५॥ अइवंकदीहरा जणमणाइं मोहंति कुलवहुकडक्खा । अणिवरिसिय(अणिवारिय)विसमविसा रोसारुणकसिणभुयग व्व ॥६॥ अन्नेसिं सोहग्गं न सहंति, न दिति कहवि य सुहच्छि । जीयं हरंति विरहे अहो ! गुणा दुज्जमा तीए ॥७॥ कुप्पंति वल्लहत्थे अपहुप्पंतस्स निययअंगस्स । अन्नपहुप्पंतस्स य पुणो असूयंति मिहणाइं ॥८॥ अट्ठाणनिलयणं विसमियसयणं खलंतमिउवयणं । वारत्तनिमियनयणं पच्छन्नरयं कहं सुहयं ? ॥९॥ वल्लहजणस्स दुक्खे निसुए विरहम्मि जायए सुक्खं । सुक्खम्मि पुणो दुक्खं पिम्मस्स गई अहो ! विसमा ॥१०॥ जस्संतरावयासो गउरवदक्खिन्नदुज्जणजणाणं । तं पि हु पेम्मं ति भणतयाण जीहा वि लज्जेइ ॥११॥ तं सुयणा जं वसिया सि तक्खण च्चेय तस्स हिययम्मि । सो दुज्जणो उण न जो अज्ज वि निवसेइ तुह हियए ॥१२॥ मं परिचियं पि उज्झिय दुल्लहलंभे जणम्मि संकेत !। हा ! हियय ! हीणसाहस ! लहसि तुमं दुक्खलक्खाई ॥१३॥ वल्लहसयवासयमंदिरेसु संझब्भसरिसराएसु । पुरिसहियएमु पेम्माबंधो को नाम वामनयणाणं ? ॥१४॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122