Book Title: Gaharayankosa
Author(s): Jineshwarsuri, Amrutlal Bhojak, Nagin J Shah, Dalsukh Malvania
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 91
________________ सुभासियगाहासंगहो गरुयाई चिय साहइ पुरिसो कज्जाई, नत्थि संदेहो । रोसो सुरंगधूलि व्य जस्स न हु पायडो होइ ॥९९।। सज्जणसलाहणिज्जे पयम्भि अप्पा न ठाविओ जेहिं । ते पुव्वपुरिसमाहप्पगविया कह न लज्जति ? ॥१०॥ अमिसनयणाए मए जं पीयं पिययमस्स लायन्नं । अंगाई तेण पियसहि! अज्ज अजिन्नेण मज्जंति ॥१०१॥ पसच्छि! सो कयत्थो जस्स कए मन्नुगग्गरिज्जंता । पंचमसरपसरुग्गारगभिणा इंति नीसासा ॥१०२॥ ते धन्ना अन्नभुअंगमेहिं पारद्धसुरयकालम्मि । जे पुण तुंग?य]सुपओहरीण हियए खुडुक्कंति ॥१०॥ जंपतो अविहत्तविग्गहो(?) तं सुहय! अज्ज सच्चवियं । दंत-नहक्खय सुंदर! तुह हियए मह खुडुक्कंति ॥१०४॥ उण्हाइं नीससंतो अवगृहसि कीस मं पराहुत्तं ? । हिययं पलीविउं चिय इहि पिट्टि पलीवेसि ॥१०५॥ निजतो कम्मपरण्वसाहिं अन्नन्नदंगतरुणीहि । एस हि ओसहिविडवो अंगे छल्ली न पल्हवइ ॥१०६॥ जो विसमम्मि वि कज्जे कज्जारंभं न मुच्चए धीरो । अहिसारिय व्व लच्छी नि:डइ वच्छत्थले तस्स ॥१०७।। रच्छाणुमग्गचडिओ नाऽऽलत्तो जं जणाण भीयाए । सो चेव विरहडाहो अज्ज वि हियए छमच्छमइ ॥१०८॥ विद्धो जियइ सुहेणं, मरइ अविद्धो तुहऽच्छिवाणेहिं । केणेयं सिक्खविया अउव्वमेयं घणुव्वेयं ? ॥१०९।। दहो वि दहइ अंगं निज्जीवो संखचुण्णो व्व । ता किं करेमि माए! निज्जियरंगस्स कामएवस्स ? ॥११०॥ सब्भावबाहिरेहि वि तह कहवि पियक्खरेहिं जपंति । जह बंधव त्ति कलिउं लोए सीसेण वुभति ॥११॥ जलहिविसंघडिएण वि निवसिज्जइ हरसिरम्मि चंदेण । जत्थ गया तत्थ गया गुणिणो सीसेण दुभंति ॥११२॥ ठाणं गुणेहिं लब्भइ ता गुणगहणं अवस्स कायव्वं । हारो वि गुणविमुक्को न पावए तरुणिथणवढे ॥११३॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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