Book Title: Gaharayankosa
Author(s): Jineshwarsuri, Amrutlal Bhojak, Nagin J Shah, Dalsukh Malvania
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 96
________________ ७२ सुभासियपजसंगहो । पिम्मस्स पोढमहिलाजणस्स विहवस्स वारिवाहस्स । परमप्पणो मणस्स य मुणंति मुणिणो विणयख्वं ॥४४॥ तित्थाण सुपुरिसाणं मणीण संताणमोसहोणं च । महिमा महासईणं च कालकलुसस्स दूरेणं ॥४५॥ नयरं महसवमयं, तुच्छा लच्छी , मणं महारंभं । विहिनिहियं मह हियए तिसल्लयं सल्लए एयं ॥४६॥ वित्तविवाहं च गिह, पयपब्भट्ठो य नरवइनिओई। गयजोव्वणा य महिला न पुव्वसोहं पि हु लहंति ॥४७॥ विहवंगणाण गम्भो, निद्धणवंगाण दाणवसणाई । जं च खवणाण कुच्चं तं अमयछ हलाहलयं ॥४८॥ अइकिविणो चेय तुमं जं इक्कम्मि वि गुणम्मि घिप्पंते । अप्परिमाणगुणो वि हु वहसि मुहमहोमुहं नाह ! ॥४९॥ न हु तुह गुणे गहिस्सं[ ? ] दुण्हं पि जाण गहणम्मि । तुह गहणासहणेणं मह उण अइमुच्छगहणेणं ॥५०॥ समरतिमिरम्मि सहलं दूयं पिव पेसिऊण पत्तवहं । अहिसारइ रिउलच्छि महल्लिया जस्स चावलया ॥५१॥ तई गिहिय चावलए रिऊण लच्छी ति गहियचावलया। रत्ता तुमम्मि नरवइ ! दरिसइ सरिसत्तणं नृणं ॥५२॥ उन्नमिऊण नहयले जलहर ! तुह गज्जियं पि छज्जेइ । वज्जेण दहिउममएण सिंचिउं वयसि जं भुयणं ॥५३॥ जइ विहवीण विणीयं दिद्विपहे कहवि वच्चइ अवच्चं । ता अमय-चंद-चंदिम-चंदणपंकेहिं न हु किंपि ॥५४॥ मन्नति दुहं पि मुंह महिलाओ अवच्चनेहगहिलाओ। परवाललालणं पि हु जं किर वंझाओ झायति ॥५५।। धन्नाओ ताओ कुलबालियाओ निम्महियमोहमहिमाओ । दिटुं न वियड भिउडीपुडंकियं जाहि परवयणं ॥५६॥ मुत्तुं मालइपमुहं कुसुमसमूहं महसवदिणेसु ।। एक्कं चिय गिज्जइ बालियाहिं नोमालियाकुसुमं ॥५७॥ मुहडनरिंदपयावो सुमंतजावो पसूणसरचावो । तह य महासइसावो मा कयमव्यो ! नियत्तेइ ॥५८॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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