Book Title: Gaharayankosa
Author(s): Jineshwarsuri, Amrutlal Bhojak, Nagin J Shah, Dalsukh Malvania
Publisher: L D Indology Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 99
________________ सुभासियपज्जसंगहो जा कुडिलनीयगमणा तं जालयं पि मुत्तुमोसरह (१)। सा तुमए मइपरिहीण ! मीण ! सरिया कहं मरिया (१) ॥८॥ वेहव्वनिच्चदुक्ख व बीयपरिणित्तणं व दहिऊण । संपइ पइम्मि विहिए वहामि सोयं पमोयं वा ॥८८॥ ईसरसिरिपत्तो वि हु तुह महणिज्जो वि प(? अ)मयमोत्ती वि । पुनत्तणं न पावइ ससी जडासंगदोसेण ॥८९॥ अहह ! विहिणो पउत्तं जं सयमवि निम्मियम्मि कम्मम्मि । चिटुंतु समोवाया दुलहं(वल्लह)परिदेवियवम्मि ॥९०॥ जे निव्वासविया वि हु खणंति दूरे कया दहंति जणं । तेस विसएसु राहव ! नाह ! वणं जुज्जइ बुहाणं ॥९१॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122