Book Title: Gaharayankosa
Author(s): Jineshwarsuri, Amrutlal Bhojak, Nagin J Shah, Dalsukh Malvania
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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सुभासियगाहासंगहो वरिसंति न मेहा गज्जिऊण, पहुणो न दिति हसिऊण । न फलंति तरू जे फुल्लिऊण ते कह न लज्जति ? ॥११४॥ साहीणामय रयणो अमरमरोरं च भुअणमकुणंतो । उल्लसिरी हिं न लज्जसि लहरीहिं तरंगिणीनाह ! ॥११५।। परएसगयाणुम्माहिया जंतूण सोयतवियाणं । नियदेसागयदि8 सुणयं पि सुहावहं होइ ॥११६॥ सव्वंगनिव्वुइयरो सो अन्नो सत्तमो रसो कोइ । आसाइज्जइ जो पढमपेम्मपियसंगमाहितो ॥११७॥ जं सत्थेसु न सुव्वइ, अगोयरं जं महाकईणं पि । तं किंपि मुहं नवसंगमम्मि दइओ जणो देइ ॥११८॥ जो रुच्चइ सो लोणिया(?यो), वंभ ! किं नेहि विधेय ? । छड्डिवि सक्करगुलियरस, मट्टी खति अणेय ॥११९॥ जाहँ न अत्थी गुज्झिरसु, रूवु महद्दहि जाउ ।। खंतउ महुइं दारुणहं, कंत! लहेसहि साउ ॥१२०॥ विरसाई जाइं पमुहे, अमयरसायंति जाइं परिणामे । कज्जाइं ताई सुविचारियाई न जणे हसिज्जति ॥१२१॥ जंपसि मुणालसरिसं, हियए सारंगसिंगकुडिलो सि ।। आपण(?ण)सुहयसरलत्तणेण परवंदणिज्जो सि ॥१२२॥ जम्मि तुम अइनेहा सो वि तुमं मंदनेहओ पुत्ति! । न हु ताला वज्जइ दीहरऽच्छि! एक्केण हत्थेण ॥१२३॥ जत्थगओ तत्थगओ सामलि! सीहो न जुय(?ज)इ दलम्मि । सप्पुरिसो वि तह चिय, फुसि नयणा, कि थ रुन्नेण? ॥१२४॥ नाऊण वि विन्नाणं काऊण वि समरसाहसं कम्मं । लंघेऊण वि मेरुं पुण्णेहि विणा सुहं कत्तो ? ॥१२५॥ अ(थ)क्के भणियं सोहइ, थक्के भणियं सुहावहं होइ । अत्थक्के पुण भणियं कयं पि कज्ज विणासेइ १२६।। जह मूसयस्स एक्केण वीहिणा दो वि वावडा हत्था । तह अमुणियकल्लाणा थेवेण वि उत्तुणा हुति ॥१२७॥ गुणजाणए च्चिय जणे हुंति गुणा पायडा महग्घा य । मणिरयणाइ वि गो'.... ..................॥१२८॥ १. इतोऽग्रेतनानि पत्राणि विनष्टानि, अतोऽपूर्णोऽयं गाथासङ्ग्रहः ।।
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