Book Title: Gaharayankosa
Author(s): Jineshwarsuri, Amrutlal Bhojak, Nagin J Shah, Dalsukh Malvania
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 88
________________ ७१ सुभासियगाहासंगहो पसयच्छि! परसरीरे जोइयपइयं(?)ति निग्गए जीए । तुहुं पुण जीवंताण वि अविणट्ठतणुं समारुहसि ॥५६॥ परपुरपवेसविनाणलाहवं सुहय ! सिक्खिओ कत्थ ? । जेण पइट्ठो हियए पढमे चिय संगमे..........?मज्झ) ॥५७॥ जइ सा लायन्ननिही दिट्ठा नयणेहिं ते च्चिय रुलंतु । अंगाई अपावियसंगमाइं ता कीस झिज्जति ? ॥५८॥ दट्टण तरुणिसुर............लोट्टतबद्धकरणेहिं । दीवो वि तग्गयमणो गयं पि तेल्लं न याणेइ ॥५९ । एसो वोलेइ सही जो सो हिययं............महिलाण । दिटेण तेण कीरइ निउणावेढो नियबस्स ॥६॥ सिक्कार-कणिरकुररव-पारावयसद-कोइलारवियं । कांइ वि करिति ! हल सहि!, पियसुरए वेयणा कत्तो ? ॥६१॥ रेहइ चिय लंबिरकेसहत्थकुंडलललंतहारलया । अड्ढोप्पइया विज्जाहरि व पुरिसाऽऽरये वाला ॥६२॥ पुरिसन्नु बाल (?) खेलंतयस्स जं पडइ वारि रमणीयं । गुरुविरहजलणसंतावतावियं तं पियस्स ओल्हावए अंगं (?) ॥६३॥ जत्थ सरे मज्जिज्जइ सेवय(१)णरि(?तरुणीहिं तावियंगीहिं । सालूरा नय(?तवणमया तत्थ व दीसंति गयजीवा ॥६४॥ अव्वो ! न जामि खेत्ते, साली खजंतु कीरनिवहेहिं । जाणंता वि हयासा पहिया पुच्छंति मे मग्गं ॥६५॥ कह रक्खेउ वराई कलवी कीराण मंदगइगमणा । पीणुनयगरुयपयोहरेहिं ताला न संघडइ ॥६६॥ पत्ते पियपाहुणए कि काही दुग्गओ तुरंतो वि ? । अंधो मलिएहि वि लोयणेहिं अंधो च्चिय वराओ ॥६७॥ गुणिणो विहवारूढाण, विहविणो गुरुगुणाण न हु किंपि । अन्नोन्नयलहुययरा गिरीण जे मूल-सिहरेहिं ॥६८॥ कंकेल्लिपल्लवुव्वेल्लमणहरे जइ वि नंदणे चरइ । करहस्स तह वि मरुविलसियाई हियए खुडुक्कंति ॥६९॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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