Book Title: Gaharayankosa
Author(s): Jineshwarsuri, Amrutlal Bhojak, Nagin J Shah, Dalsukh Malvania
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 86
________________ सुभासियगाहारूंगहो वंसच्छेए वि कए न मुयइ मायंगसंगहं विंझो । नियकित्तिलंछणाओ अरुया पालेति पडिवन्नं ॥२८॥ छिज्जउ सीसं, अआ होउ बंधणं, चयउ सव्वहा लच्छी । पडिवन्नपालणे सुपुरिसाण जं होइ तं होउ ॥२९॥ उज्झंति धणं, छड्डेति मंडलं, परिहरंति नियजीयं । कुव्वंति नेय कहवि हु पइण्णहाणी महापुरिसा ॥३०॥ अच्छउ तावऽन्नजणो अंगे च्चिय जाई पंच भूयाई । ताणं चिय लज्जिज्जइ पारद्धं परिहरंतेहि ॥३॥ दढलोहसंकलाण य अन्नाण य विविहपासबंधाणं । ताणं चिय अहियथरो वायाबंधो कुलोणाणं ॥३२॥ कीरंति जाई जोव्वणवसेण अवियारिऊण कज्जाइं । वयपरिणामे भरिपाई ताई हियए खुडुक्कंति ॥३३॥. परिणमियकज्जपरिभावणार बुद्धीओ जा विसति । ता जइ पढमारंभे हवंति ता किं न पज्जतं ? ॥३४॥ पढमं चिय रोसबसे जा इच्छा होइ सा न कायव्वा । अह कहव कीरइ च्चिय न सुंदरो तीय परिणामो ॥३५।। अपरिक्खियकयक सिद्धं पि न सज्जणा पसंसंति । सुपरिक्खियं पुणो विहडियं पि न जणेइ वयणिज्जं ॥३६॥ वयणिज्जं चिय मारणं होइ कुलीणाण सघणमज्झम्मि । जं पुण मरणं सा कालपारणइ लोयसामन्ना ॥३७॥ केत्तियमित्तं च धरा मह बलिणो तुज्झ मग्गमाणस । अप्पा न केवलं चिय अहं पि लहुईकओ काह! ॥३८॥ तइयपयं अलहंतो सामरिसो कीस कण्ह! मह उवरि । एत्थ तुह च्चिय दोसो मडहा पुहई कया जेण ॥३९॥ परपत्थणापवन्नं मा जणणि! जणेसि एरिसं पुत्तं । उयरे वि तं भ धरिहसि पत्थणभंगो को जेण ॥४०॥ जाओ सि कीस दुग्णप! ? किं न विलीणो [सि] गभरासे वि ? । - महिलाण मंडणं अविहल(?वत्तणं न उग पुरिसाण ॥४१॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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