Book Title: Gaharayankosa
Author(s): Jineshwarsuri, Amrutlal Bhojak, Nagin J Shah, Dalsukh Malvania
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 84
________________ सुभासियगाहासंगहो ॥ नमः सरस्वत्यै ।। लंका लया पलासा वसंतमासम्मिलद्धमाहप्पा । निव्वाहिऊण सीयं पच्छा कलियारया जाया ॥ १ ॥ कलियामिसेण उभेवि अंगुली मालईए महमहियं । वारेउ जा समत्था मह इंतं महुयरजुवाणं ॥२॥ पवणुद्धयपल्लवकरयलेहि वारेइ माहवी भसलं । पुप्फवइमल्लियासंगसिओ मा ममं छिवसु ॥ ३ ॥ मालइकलिया मयरंदमंदिरा मंदमंदवियसंती । कुसलेण छप्पएण व तह रमिया जह न उत्तसइ ॥४॥ गरुयत्तणस्स को मामि ! मरुयओ पत्तियं पुण भणामि । पाए धुवंति निस्सेसतरुयरा परिमलकहाए ॥५॥ लच्छीकरकमलवियासरेणुपूरिज्जमाणनयणेहिं । पासढिया वि दीसंति नेय रोरा धणइढेहि ॥६॥ सूरायवपप्फुटुंतकणयकंदोहरेणुपिंगंगा । दंसणमित्तेणं चिय माणसहसा कलिज्जति ॥७॥ नृणं रखलकालकूडविससंगकलुसिया लच्छी। मउलंति जेण नयणाई तक्खणं तोए जे दिहा ॥ ८ ॥ सुइ-दिहिवायहरणे नराण लच्छीए को विसंवाओ ? । जं न कुणइ गरलसहोयरा वि मरणं तमच्छरियं ॥ ९ ॥ पेच्छंता वि न पेच्छंति, जाणमाणा वि नेय जाणंति । निसुणंता वि हु निसुणंति नेय रज्जं समासज्ज ॥१०॥ अणहुंता वि हु हुँतीए हुति, हुंता वि जति जंतीए । ओ ! जीए समं नीसेसगुणगणा जयउ सा लच्छी ॥११॥ अवणिज्जइ हारो कामिणीहिं थणमंडलाओ रइसमए । अवसररहिया गुणवंतया वि दूरे ठविज्जति ॥ १२ ॥ दूर च्चिय पम्मुक्का तुम्ह(?ज्झ) फलासा पलास ! सउणेहिं । कुसुमोग्गमम्मि तइया जं किर कसणीकयं वयणं ॥१३॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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