Book Title: Gaharayankosa
Author(s): Jineshwarsuri, Amrutlal Bhojak, Nagin J Shah, Dalsukh Malvania
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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गाहारयणकोसो अक्खंडियमुहरायो पुवाभासी अभिन्नमुहराया। सिढिलंता वि सिणेहं छेया दुक्खेण नज्जति ॥२५८॥ रच्चावंति, न रच्चंति, दिति दुक्खं, न दुक्खिया होति । असुणिवि णियत्तइण्हि दुक्खाराहा जए छेया ॥२५९॥ मा रुयसु सुयण ! छेयाण अग्गए झिझिहिति नयणाई । न हु भिज्जइ ताण मणं वज्ज पिव सलिलनिवहेण ॥२६०॥ रच्चंति नेय कस्स वि, रत्ता वि मयच्छि ! न हु मुणिज्जति । दिणकरकर व्व छेया अदिदोसा नियटुंति ॥२६॥ रत्ते रत्ता, कसिणम्मि कसिणया, मज्झिमम्मि मज्झिमया । फलिहमणि व्व छयल्ला जत्थ गया तत्थ रंगिल्ला ॥२६२॥ जह पढमदिणे तह पच्छिमम्मि फरुसाई नेय जपंति । अम्मो(?व्यो) छइल्लपुरिसा विरच्चमाणा वि दुल्लक्खा ॥२६३॥ जोव्वणभरेण अह मंडणेण हिययं हरति रमणीओ । अंगनिवेसभवं चिय छेया मग्गंति चंगतं ॥२६४॥
२३. अथ हियालीप्रक्रमः विवरीयरए लच्छी बंभं दळूण नाहिकमलत्थं । हरिणो दाहिणनयणं करेण भा(भ)ण झंपए कीस ? ॥२६५॥ सिहिपिच्छकन्नऊरा जाया वाहस्स गबिरी कीस । मुत्ताहलरइयपसाहणाण मज्झे सवत्तीण ? ॥२६६॥ जइ सासुयाए भणिया पइवासहरम्मि दीवयं देसु । ता कीस पोढमहिला हसिऊण पलोवए हिययं ? ॥२६७॥ जइ सा सहीहिं भणिआ तुज्झ मुहं पुन्नचंदसारिच्छं । ता कीस मुडमुही करेण गंडस्थलं फुसइ ? ॥२६८॥ मडयावत्थाभरणा मुयमडएणं च मंडियकरग्गा । मडयारूढा मुइया पियस्स मुयपाणियं देइ ॥२६९॥ १. "उवयारा-अयमपि सम्यक्” इति प्रतौ पाठान्तरनिर्देशः, अत्र “अक्खंडिय उवयारा" इति पाठान्तरं ज्ञेयम् ॥
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