Book Title: Gaharayankosa
Author(s): Jineshwarsuri, Amrutlal Bhojak, Nagin J Shah, Dalsukh Malvania
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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सिरिजिणेसरसूरिविरइओ अस्थमणं पहरपरव्वसाण जइ होइ, होउ, को दोसो।। जं पुण मुच्चइ तेओ सूराण न एरिसं जुत्तं ॥५३२॥ नवकुंकुमरत्तपओहराए अंकम्मि पच्छिमवहूए । तरणिं निएवि पुव्वा ईसाई व सामला जाया ॥५३३॥ अद्धऽत्थमिए सूरे अद्भुग्गमिए य पुन्निमायंदे । संझाभरेण नज्जई नहसयडं खुत्तचक्कं व ॥५३४॥ जलहिजलसमालंबियसयणस्स मुरारिणो समुद्देण । दिज्जइ महापईवो व्व वीईसंवेल्लिओ सूरो ॥५३५।।
३६. अथ चक्रवाकप्रक्रमः पडिवन्ने निव्वहणं निव्बूढं तुह रहंग! एक्कस्स । मित्तऽत्थमणे दइया वि जेण सहस त्ति पडि(रि)चत्ता ॥५३६॥ मित्तम्मि गए, दोसायरुग्गमे, मउलियम्मि गुणनिवहे । का दाणि पियविओए होज्ज गई चक्कवायस्स ? ॥५३७॥ आसासिज्जइ चक्को जलगयपडिबिंबदंसणसुहेण । तं पि हरंति तरंगा पेच्छह निउणत्तणं विहिणो ॥५३८॥ आसन्नसंगमासाए नेति रयणि सुहेण चक्काया । दियहं पुण होंतविओयकायरा कहवि वोलंति ॥५३९॥ चंचुपुड छिन्ननवनलिणिनालखंडेण चक्कमिहुणेहिं । मित्तऽत्थमणे दिन्न व्व अग्गला जीवनिग्गमणे ॥५४०॥
३७. अथ खद्योतप्रक्रमः कह सो लेहु त्ति भन्नइ खज्जोओ जो निसाइ पयडेइ । सूरत्थमणे तेयं निययपमाणाणुसारेण ॥५४१॥ जाया रैयणम्मि गई, तारयसमसीसियाए विप्फुरियं । सूरत्थमणे खज्जोययाण किं जं न निव्वडियं ? ॥५४२॥
२. बोइस पतौ ॥ २. लहुं ति प्रतिपाठः ॥ ३. निसाई प्रतिपाठः ॥ ४. रयणिम्मि प्रतिशोधकशोधित: पाठः ॥
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