Book Title: Gaharayankosa
Author(s): Jineshwarsuri, Amrutlal Bhojak, Nagin J Shah, Dalsukh Malvania
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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सिरिजिणेसरसूरिविरइओ पियसंभरणपलोतअंसुधारानिवायभीयाए । दिज्जइ वंकग्गीवाए दीवओ पहियजायाए ॥५०६॥ वाहि व्व विज्जरहिओ, धणरहिओ साहुवासवासो व्व । रिउरिद्धिदंसणं पिव दूसहणिज्जो तुह विओओ ॥५०७॥ भरिओव्वरंतपसरियभरणपिसुणो वराईए (?) ।। परिवाहो इव दुक्खस्स वहइ नयणहिओ वाहो ॥५०८॥ अज्जं पि ताव एक्कं मा मं वारेह पियसहि ! रुयंतिं । कल्लं पुण तम्मि गए जइ न मरिस्सं न रोविस्सं ॥५०९॥ एत्थ ठिया, इह रमिया, पत्थ य कुविया, पसाहिया एत्थ । अज्ज वि पियाणुराओ सुन्ने वि घरे तह च्चेव ॥५१०॥ मोत्तण निययनाहं अन्नं नेच्छामि ताव मुविणे वि । आवयपडिया वि दढं रयणियरं स(म)हइ किं नलिणी ॥५११॥ एक्केण वि संबंधेण पुन्निमा घडइ तं पि किं चोज्जं । आपक्खं झिज्झइ जेण तीए विरहे रयणिनाहो ॥५१२॥ अहह ! तुहविरहहुतवहजालावलिकवलियं पुणो वि पुणो । ओ ! हिययं डज्झइ तुज्झ नेहनिस्संद[5]सिच्चतं ॥५१३॥ मा मा विज्जसु सहिए ! दीहरपत्तेहिं सरलतरले हिं । बाले ! तुमं न याणसि विरहसिही जलइ पवणेण ॥५१४॥ लुलियालयं मुहं से लक्खिज्जइ वामकरयलनिसन्नं । भमरभरवरि(?लि)यनालं कमले कमलं व पल्हत्थं ॥५१५॥
३५. अथ सूर्यास्तप्रक्रमः पच्छामुहो [वि] वियरइ पहरहओ अंबरं पि मोत्तण । तह वि हु भन्नइ सूरो पेच्छ ! पसिद्धीए माहप्पं ॥५१६॥ वियलियतेएण वि ससहरेण जह दंसिओ दिणे अप्पा । तह जइ तुमं पि दंसे(सि सि रयणीए सूर ! ता सूरो ॥५१७॥ सव्वो दिवसस्स वसो पुरिसो किं कुणइ तेयवंतो वि। दियहंते सूरो वि हु पेल्लिज्जइ सहि ! ससंकेण ॥५१८॥
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