Book Title: Gaharayankosa
Author(s): Jineshwarsuri, Amrutlal Bhojak, Nagin J Shah, Dalsukh Malvania
Publisher: L D Indology Ahmedabad
View full book text ________________
सिरिजिणेसरसूरिविरइओ हा ! हा ! कह न मरिज्जइ इमिणा दुक्खेण जं मयंदस्स । दीसइ गुहा समुन्भडजंबुयपयपंतिचित्तलिया ॥७३७॥ इह वस-मासं इह रुहिरकद्दमं इह हि मुत्तिउक्केरो । कइवारं केसरिविलसियस्स मग्गो च्चिय कहेइ ॥७३८॥ निसियखरनहरपहरणविभिन्नकरिकुंभभासुरकरा(रे)णं । हरिणाण को विरोहो ? का मित्ती सह मयंदेण? ॥७३९॥ लीलानिद्दलियगयंदकुंभपयडियपयावपसरस्स । सीहस्स मएण समं न विग्गहो नेय संधाणं ॥७४०।। निग्गूढपोरिसाणं असच्चसंभावणा वि संभवइ । एक्काणणे वि सीहे जाया पंचाणणपसिद्धी ॥७४१॥ खरनहरपहरनिद्दलियमत्तमायंगकुंभकेसरिणो । अइदुब्बलस्स वि बलं खंडिज्जइ किं सियालेहिं ? ॥७४२॥ हेलाए निमुंभियकुंभिकुंभविहवस्स चलणनहपंती । छिप्पउ छलेण निदालुयस्स हरिणो वि हरिणेण ॥७४३॥ निबिडचवेडवियारियकरिकुंभोच्छलियमोत्तियनिहेण । पुप्फवरिसो व्व खित्तो सिद्धेहिं सीहचरियस्स ॥७४४॥ पंचाणणनहमुइकियाई रेवातडाई दट्टण । मयपसरपरवसेहिं वि गएहि न हु तत्थ परिभमियं ॥७४५॥
५४. अथ गजप्रक्रमः भुजंति कसिणदसणा अभितरसंठिया गयंदाण । जे उण विहुरसहावा ते धवला बाहिर च्चेय ॥७४६॥ दाणं दितस्स वि खणइ अंकुसो तह गयंदकुंभयडं । सीसे वि कया वंका लोहमया कं न दुर्मति ? ॥७४७॥ दंतच्छोहं तडविडविमोडणं सरससल्लईलिहणं । जइ विंझो च्चिय न सहइ ता करिणो कत्थ वच्चंति ? ॥७४८॥ दंतुल्लिहणं सव्वंगमज्जणं हत्थबुड्डणायासं ।। पोढगयंदाण वणे पुणो वि जइ नम्मया सहइ ॥७४९॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Loading... Page Navigation 1 ... 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122