Book Title: Gaharayankosa
Author(s): Jineshwarsuri, Amrutlal Bhojak, Nagin J Shah, Dalsukh Malvania
Publisher: L D Indology Ahmedabad
View full book text ________________
५
गाहारयणकोसो
५२. अथ पर्वतप्रक्रमः एक्को च्चिय उययगिरी सज्जणचूडामणी भुयणमज्झे । जो सीसे काऊणं मित्तं उदयं करावेइ ॥७२५॥ सो को वि समुप्पन्नो धराहरो कुलगिरीण मज्झम्मि । जस्स भुवणाहिनाहो मूरो वि पयाहिणं कुणइ ॥७२६॥ सुरगिरिणो किं तुंगत्तणेण ? किं तस्स कणयरीद्धीए ?। पासे विभमंतं मित्तमंडलं जस्स अथमिकं ॥७२७॥ उव्वहइ नवतणंकुररोमंचपसाहियाई अंगाई ।। पाउसलच्छीइ पोहरेहि परिपिल्लिओ विझो । ७२८॥ वद्धियपओहेराए अइलंघियगुरुमहीहरसयाए । जणओ सुयाइ खिज्जइ विंझो रेवाए कुमरीए ॥७२९॥ मयवसमयरभमरेहिं को (?) विणा करिवरेहि विझगिरी । विझं विणा करी वि हु पावंति पराहवसयाइं ॥७३०॥ एक्कस्स मलयगिरिणो दिज्जइ रेहा गिरीण मज्झम्मि । जत्थ ठियकुडय-निंबा रुक्खा सिरिचंदणं होति ॥७३१॥ जह सरसे तह सुक्के वि पायवे वहइ अणुदिणं विंझो । उच्छंगबद्धियं नीरसं पि गरुया न सिढिलंति ॥७३२॥ अत्थइरि ! सहइ तुह चेय तुंगिमा महिहराण मज्झम्मि । मित्तं वियलियतेयं सीसेण समुव्वहंतस्स ॥७३३॥ किं वाऽऽगएहिं किं वा गएहिं कि वा गएहिं विंझस्स । जाण समक्खं कीरइ वंसच्छेओ पुलिदेहिं ॥७३४॥
५३. अथ सिंहप्रक्रमः इत्तो रुहिरं इह मोतियाई तह करिकवालखंडेहिं । अच्छउ अण्णं पंचाणणस्स मग्गो वि दुव्विसहो ॥७३५॥ पहरसि जेहि गयंद करालनहपंजरेहिं हत्थेहिं । तेहिं चिय पहरंतो लज्जसि न मयंद ! हरिणम्मि ? ॥७३६॥
१. हरपसाहियाए प्रतौ ॥ २. 'अइलंपियगुरुमहीहसयाए' इत्यशुद्ध पाठं विशोध्य 'अइलपियगुरुमहीए' इति शोधितः पाठः प्रतौ ।। ३. एतदनन्तरं "गाथा ७००॥” इति प्रती॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Loading... Page Navigation 1 ... 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122