Book Title: Gaharayankosa
Author(s): Jineshwarsuri, Amrutlal Bhojak, Nagin J Shah, Dalsukh Malvania
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 80
________________ गाहारयणकोसो कीरंति जाई जोव्वणवसेण अवियारिऊण कज्जाइं । वयपरिणामे संभारियाई हियए खुड़क्कंति ॥८०२॥ दइढो चंदणविडवी असेसवणरायमंडणं इमिणा । हद्धी ! छारस्स कए विक्कमियं हयहुयासस्स ॥८०३॥ दिव्वम्मि परावु(हु)त्ते एत्ति? पत्तिय) घडियं पि विहडइ नराणं । व(क)ज्जं वालुयधरणं व कह व बंध च्चिय न एइ ॥८०४॥ खंडिज्जइ विहिणा ससहरो वि, सूरस्स होइ अत्थमणं । हयदिव्वपरिणईए कवलिज्जइ को न कालेण ? ॥८०५॥ जलणपवेसो चामीयरस्स भण कह न जुज्जए काउं । हद्धी ! जस्स परिक्खंति पत्थरा मामि ! गुणनियरं ॥८०६॥ वसणाई रिद्धिसमुद्भुरेसु लोएसु होति पाएण । असमग्गसिरि राहू वि गसइ, न हु जामिणीनाहं ॥८०७॥ दीणत्तं कुणमाणो जणो सयं चेव मरणमहिलसइ । पडिवयणं जं कढिणं तं पुण मयमारणं तस्स ॥८०८॥ ताव य कोवावसरो जाव विवेओ मणे ण विप्फुरइ । जलियं व भयवया हुयवहेण धृमो य विणियत्तो ।।८०९॥ सयलजणनयणकडुयं नित्थामं तह पयावपब्भटुं । नियतणयं धूमं पेच्छिऊण छारं गओ अग्गी ॥८१०॥ दिवस-निसाघडमालं जीवियसलिलं जणस्स घेत्तूणं । चंदाइच्चबइल्ला कालऽरहट्टं भमाडिंति ।।८११॥ अत्थमणे छडिज्जइ नृणं सूरो वि निययकिरणेहि । पुरिसस्स वसणकाले देहुप्पन्ना वि विहडंति ॥८१२॥ दीहरफणिंदनाले महिहरकेसर-दिसामुहदलिल्ले । ओ पियइ कालभमरो जणमयरंदं पुहइपउमे ॥८१३॥ परिगलियं तं पिम्मं गयाइं रूसण-पसाहियव्वाइं । इन्हिं वित्तविवाहो व्व हियय ! तं निब्भरं मुयसु ॥८१४॥ १. 'याइं ताई हियए प्रतिपाठः ।। २. 'तस्स' इत्येनं लेखकलिखितं पाठं संशोध्यात्र 'तत्थ' इति शोधककृतः पाठः प्रतौ ॥ ३. “वीत" इति प्रतौ टिप्पणी ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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