Book Title: Gaharayankosa
Author(s): Jineshwarsuri, Amrutlal Bhojak, Nagin J Shah, Dalsukh Malvania
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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सिरिजिणेसरसूरिविरहओ मा वच्चह वीसंभं नईण नारीण सइरचारीणं । पसरियपओहराओ कूलाई कुलाई पाडंति ॥८१५॥ कह नाम तीए तं तह सहावघट्टो वि सिहिभरो पडिओ । अहवा महिलाण चिरं को वा हिययम्मि संठाइ ? ॥८१६॥ महिहरतणया रयणा[य]रप्पिया नम्मया वहइ सलिलं । जुत्तं नीससइ जणो दीहं धृयाए जायाए ॥८१७॥ धवला मइलणसीला सिणेहपरिपूरिया वि तावेइ । दीवयसिह व्व महिला कज्जलमइलं घरं कुणइ ॥८१८॥ सग्गाओ हरं गंगा गया, हराओ गिरिं, तओ जलहिं । लद्धपसराण तित्ती महिलाण न एगपुरिसम्मि ॥८१९॥ महिलाओ कमलिणीओ व अणुरत्ताओ गुणेहिं जुत्ताओ । पिच्छंतस्सेव य दिणवइस्स भमरेहिं जुत्ताओ ॥८२०॥' मित्तऽत्थमणुव्विग्गा दटुं भमरेहि कमलिणी मुक्का । अन्नासत्तं न रमंति महुलिहा ओ वि(?), कि चोज्जं ? ॥८२१॥ भदं कुलंगणाणं जासिं मणकमलकोसमणुपत्तो।। मयणभमरो वराओ वच्चइ निहणं तहिं चेय ॥८२२॥ नेहक्खयं कुणंती पज्जलइ [य] सगुणवट्टिसंगेण । दीवयसिह व्व लच्छी अथिर च्चिय बहुअवाएहिं ॥८२३।। दूरेण निहियभमुहा पए पए किंपि किंपि चिंतंता । नटुं व जोव्वणं महियलम्मि थेरा पलोयंति ॥८२४॥ १. अत्रार्थे प्रतौ गाथा-दोधकादिपद्यपञ्चकं टिप्पणीरूपेण लिखितं वर्तते, तद्यथा--
"जे नामंति न सोसं कस्स वि भुवणे वि जे(ते) महासुद्दडा । रागंधा गलिअबला रुलंति महिलाण चरणतले ॥१॥ जिम जलो जलमांहिली तिम नारी निरवाण । ओलागी लोही पीई, नारी पीई पराण ॥१॥ अंजलि ! धुं अयाण नीर न देखें नीठतुं । जिम पाणि, तिम प्राण नी(ना)र न देखें नीठतु ॥१॥ अन्नं रमइ निरिक्खइ अन्नं चितेइ भासए अन्नं । अन्नस्स देइ दोसं कवडकुडी कामिणी वियडा ।।१।। भोअण धोविणि जलवहणि बाहिरभूमि गयाह । देवभवणि पप्पडवलणि रसगुदी महिलाण ॥१॥"
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