Book Title: Gaharayankosa
Author(s): Jineshwarsuri, Amrutlal Bhojak, Nagin J Shah, Dalsukh Malvania
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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सिरिजिणेसरसूरिविरइओ रेहइ सामलमूलं किंसुयकुसुमं वसंतम्मि ॥६८५॥ महुसमए वि हु जाओ कोइलसदो कलो वि एयस्स । एक्काए मालई ए विणाऽलिणो वज्जपडहो व्व ॥६८६॥ माणंसिणिमाणगयंदमत्थउच्छलियसोणियारुणियं । आरोह व्व वसंतो किंसुयकलियंकुसं वहइ ॥६८७॥ झंपेइ तुरियतुरियं अलिउलघणकंबलेण सहयारो । पहियाण विणासाऽऽसंकिओ व्व लच्छि वसंतस्स ॥६८८॥'
४९. अथ ग्रीष्मप्रक्रमः अच्चंतखवियदोसो परिवढियमित्तमंडलालोओ ॥ कस्स न जणेइ दुक्खं गिम्हो सुयणो व्व वोलितो ॥६८९।। गिम्हे महदहाणं अंतो सिसिराई बाहिरुन्हाइं । जायाई कुवियसज्जणहिययसरिच्छाई सलिलाई ॥६९०॥ गिम्हावरमज्झन्हे पाया पहियस्स वालुयाउवरि । चंदणपंक व्व ठिया पियापउत्ति सुणतस्स ॥६९१॥ आसुंघिऊण अइ ए ! तन्हाविहले गयम्मि मयजूहे । झीणविहवस्स हिययं फुटं व तलं तलायस्स ॥६९२।। दूसहसंतावभया संपइ मज्झट्टिए दिवसनाहे ।। छाहिं व वंछमाणा छाया वि गया तरुतलाई ॥६९३॥ दठूण दिवसनाहं वच्चंतं उत्तरोत्तरपएसुं । परिमुक्कदक्षिणासं हरिसेण विवढिया दिवसा ॥६९४॥ गिम्हम्मि कलिजुगम्मि व जं मित्तो तवइ गोत्तजायं पि । दोसायरो जडो वि हु मुहाइ भवणस्स तं जुत्तं ॥६९५॥ दीहरदिणम्मि गिम्हे अइसयखिण्णे रवी सया पहिओ । सयलसराण पियंतो करेहिं सलिलाइ तणुएइ ॥६९६॥
१. "पत्ताणि (? पत्ता) झडंति, विअसंति कुज्जया, अलिअणाण आणंदो । कुप्पहुवसंतसमए नहु दीसह विअसिमा आई ॥१॥" इति प्रतौ टिप्पणी ॥
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