Book Title: Gaharayankosa
Author(s): Jineshwarsuri, Amrutlal Bhojak, Nagin J Shah, Dalsukh Malvania
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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गाहारयणकोसो कमलायराण उण्हो हेमंतो सीयलो जणवयाणं । को किर भिन्नसहावं जाणह परमत्थओ लोयं ? ॥६७४॥ अच्छउ ता अन्नजणो हेभंतदिणेसु पेच्छ अच्छरियं । अणुसरइ सीयभीओ वडवग्गि झत्ति तवणो वि ॥६७५॥ उन्हो त्ति समत्थिज्जइ दाहेण सरोरुहाण हेमंतो । चरिएण नज्जइ जणो संगोवंतो वि अप्पाणं ॥६७६॥
४७. अथ शिशिरप्रक्रमः अंगे पुलयं अहरं सवेविरं जंपियं ससिक्कारं । सव्वं सिसिरेण कयं जं कायव्वं पिययमेण ॥६७७॥ मुहकुहरंतरणिज्जंतसासओ पत्थिओ जणो गोसे । पिर्यावरहजलणडज्झंतहिययधूमं व उग्गिरइ ॥६७८॥ लोए फलाण मज्झे एका चिय मह सुहाइ नारंगं । जस्स परिकुवियदइआकयोलसरिसी फुरइ सोहा ॥६७९॥ एको च्चिय दुविसहो विरहो मारेइ गयवई भीमो । 'किं पुण निसियसिलीमुहसमावहो फग्गुणो पत्तो ॥६८०॥
४८. अथ वसन्तप्रकमः गहिऊण चूयमंजरि कीरो परिभमइ पत्तलाहत्थो ।
ओसरसु सिसिरनरवइ ! पुहई लद्धा वसंतेण ॥६८१॥ पवणतुरयाधिरूढो अलिउलझंकारतूरनिग्धोसो ॥ पत्तो वसंतराया परहुयउग्घुट्ठजयसद्दो ॥६८२॥ दीसइ न चूयमउलं अज्ज वि न हुवाइ मलयगंधवहो । पत्तं वसंतमासं साहइ उक्कंठओ चेय ॥६८३॥ अण्णण्णतरुलयासुरहिपरिमलेणानिलेण छिप्पंती । कुसुमंसुएहि रुयइ व परम्मुही तरुणचूयलया ॥६८४॥ भमरो व्व फुडियहियो बहिनिग्गयजाइविरहसिहिजालो ।
१. “किं पुण मिलियसिलीमुहसमावहो फग्गुणो मासो' इत्यपि पाठः समीचीमः ।" इति प्रतौ टिप्पणी ॥
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