Book Title: Gaharayankosa
Author(s): Jineshwarsuri, Amrutlal Bhojak, Nagin J Shah, Dalsukh Malvania
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 56
________________ गाहारयणकोसो सव्वो च्चिय पियविरहे दुक्खविणोयं करेइ निदाए । मह तेण सा वि हीरइ, भण सरणं कं पवज्जामि ॥४९२॥ निह च्चिय वंदिज्जइ, किं कीरइ देवयाहिं अन्नाहि १ । जीए पसारण पिओ दीसइ दूरे वि निवसंतो ॥४९३॥ धन्ना ता महिलाओ जाओ पियं सुविणए वि पिच्छति । निद्द च्चिय तेण विणा न होइ, को पिच्छए सुविणं ? ॥४९४॥ अच्छीई चिय तं पेच्छिराई रोयंतु अहव फुटुंतु । हियएण किं कयं जेण वहइ मरणाहियमवत्थं ? ॥४९५॥ ससिवयणाए जणो जं जंपइ 'मुद्ध'त्ति तं तहा सच्च । मह मयणानलजलिए निवसइ कह अन्नहा हियए ? ॥४९६॥ विरहविसतवियहियया सिहिसिहरसिलायलम्मि वीसंता । सामाए वयणपवणं पियंति जे ते च्चिय भुयंगा ॥४९७॥ विरहकिसियाए तीए कराओ भूमीए वियलिओ वलओ । पिम्ममहीरुहवियडाऽऽलवालकरणि समुव्वहइ ॥४९८॥ जं पि य [१पिय]मंगलवासणाए पत्थाणपढमदियहम्मि । वाइसलिलं न निइ तं चिय विरहे रुयंतीए ॥४९९॥ सरसं पि नलिणवत्तं डझंतं पेच्छिऊण अंगेसु । दाहभया हि सुमुक्का तीए भुया मुहय(१ल)वलएहिं ॥५००॥ जेहिं दइयं न नायं अणायदुक्खा सुहीण ते पढमा । जाणं पिययणविरहो अणाइदुक्खाण ते पढमा ॥५०१॥ रोवंतु नाम तं जणमपिच्छमाणाई दड्ढनयणाई । तं हियय! किं विसरसि साहीणे चिंतियवम्मि ?॥५०२॥ सहि ! सुणसु मह पउत्तिं अहं पि किं पवसिया सह पिएण । अन्न च्चिय दीसइ का वि दप्पणे जेण साममुही ॥५०३॥ अज्ज मए तेण विणा अणुहूयसुहाइं संभरंतीए । अहिणवमेहाण खो निसामिओ वज्जपडहो व्व ॥५०४॥ विरहकरवत्तदुसहफालिज्जतस्स तीए हिययस्स । अंसुसकज्जलमइल पमाणमुत्तं व से धरियं ॥५०५॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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