Book Title: Gaharayankosa
Author(s): Jineshwarsuri, Amrutlal Bhojak, Nagin J Shah, Dalsukh Malvania
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 60
________________ गाहारयणकोसो नियनामपयडणत्थं लहुपक्खा वि हु फुरंतु खज्जोआ । ववसायो च्चिय जिप्पइ, नाऽऽयारो तेयवंताणं ॥५४३॥ तणुने(ते)यफुरणपयडियदरनहमग्गाण कीडयाणं पि । खज्जोय त्ति पसिद्धी जा जाया तेण झिज्झामो ॥५४४॥ ३८. अथ चन्द्रप्रक्रमः संझाराओत्थइओ दीसइ गयणम्मि पडिवयाचंदो । रत्तदुगुल्लंतरिओ व्व नहनिवाओ नववहुए ॥५४५॥ जाओऽसि वंदणिज्जो जिस्सा संगेण सुद्धवक्खाए । जइ सा वि होइ बीया पढमा उण चंद का तुज्झ ? ॥५४६॥ वंको कलिक्कविहवो निसियर ! मइलोऽसि दिनटोऽसि । तह वि नमिज्जसि जं तं एवं बीयाए दुच्चरियं ॥५४७॥ सरसं मउयसहावं विमलगुणं मित्तसंगमुल्लसियं । कमलं नहच्छायं कुणंत ! दोसायर ! नमो ते ॥५४८॥ मज्झे जडाण निवसंतयस्स कत्तो गुणाण वित्थारो ? । हरससिणो तं बहुयं सा वि कला जं न से झीणा ॥५४९॥ सारं कलाहिरामत्तणस्स तुह जाणियं चिय मयंक !।। सरसा वि जेण समुही न सक्किया कमलिणी काउं ॥५५०॥ नरसिरकवालसमसीसियाए मज्झे जडाण निवसंत ! । सभुयंगे हरसीसम्मि चंद ! को तुज्झ बहुमाणो ? ॥५५१॥ हरिणटाणे हरिणंक ! जइ सि हरिणाहिवं निवासंतो। न सहतो चिय ता राहुपरिभवं से जियंतस्स ॥५५२॥ चंदमयंदवियारियदुद्धरतमहत्थिमत्थउच्छलियं । लक्खिज्जइ गयणवहे मुत्तानियरं व गहचक्कं ॥५५३॥ अइरत्तया वि गुणिणो मित्तरया दोसदसणे विमुहा । इय मुणिऊण य चंदो कुणइ सकोसाई कमलाई ॥५५४॥ गयणमहासरसियपुंडरीयसरिसत्तणं वहंतस्स । चंदस्स मयकलंको छज्जइ नीलालिवलउ व्व ॥५५५॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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