Book Title: Gaharayankosa
Author(s): Jineshwarsuri, Amrutlal Bhojak, Nagin J Shah, Dalsukh Malvania
Publisher: L D Indology Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 64
________________ ॐ: गाहारयणकोसो ४२. अथ कमलिनीप्रक्रमः अत्ताणग्गलकयपत्तपरियरे निहियगुरुयडाजाले । मित्तसमप्पियकोसे कह कमले वसउ मा कमला ? ॥५९६॥ वियसइ को न पयत्थो ? को य न कोसेण होइ सकयत्थो । कस्स न गुणेहिं कित्ती सहसि तुमं कमल ! कंटइओ ? ॥५९७॥ कर-चरण-नयण-वयणेहि वामनयणाण जस्स समसीसी। तं कहसु कह न किज्जइ कमलं कमलाइ कुलभवणं? ॥५९८॥ कमलो(?लं) च्चि(?चि)य वहउ सिरिं, भण्णउ गुणवंतयं पि तं चेव । वियसियमुहस्स कोसे मित्तकरा जस्स विलसंति ॥५९९॥ संगो महुएहिं समं, जडाओ बहवो, सकंटयं देहं । केण वि गुणेण लच्छीए तह वि कमलेसु अणुराओ ॥६००॥ नलिणगुणे पसरियकंटयम्मि जडसंगवइिढ उल्लासे । किं कीरउ विहिणो पंकयम्मि जं निवसए लच्छी ? ॥६०१॥ दड्ढमहिलासहावो अन्नो च्चिय को विजं तविज्जंती। सूरेण वियसइ च्चिय ससिसंगपरम्मुही नलिणी ॥६०२॥ आलोयमत्तवियसंतकुमुइणीपीयमाणघणजोण्हं । ओ नलिणि ! मियंकं परिहरंति ! तई वंचिो अप्पा ॥६०३॥ पायडिया वि हु अहला मज्झे अणजाणयाण होति गुणा । इय मन्नंतं कमलं निययगुणे गोविउं धरइ ॥६०४॥ हद्धी ! कह न मरिज्जइ मराललीलाविलासजोग्गाए । नवणलिणीए ? खंडेइ वायसो जत्थ अहरदलं ॥६०५॥ करसंबंध काऊण अंगपरिरंभणं अर्दितेहिं । न विडंबिज्जइ मित्तेहि कित्तिएहिं सरोरुहिणी ? ॥६०६॥ पविरलदसणसीलेण होइ पिम्मं सुदूसह इमिणा । इय कलिऊण य नलिणी ससिसंगपरम्मुही जाया ॥६०७॥ न सहइ मयंककिरणे, सहइ सुतत्ते वि दिणयरमऊहे । सोमालत्तण-जरढत्तणाई, कमले समप्पंति ॥६०८॥ विसमायववडियस्स वि सूरस्स दिणक्खए पियं नलिणिं । छिवइ करेहिं ससंको राया वि भएण संकुइयं ॥६०९॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122