Book Title: Gaharayankosa
Author(s): Jineshwarsuri, Amrutlal Bhojak, Nagin J Shah, Dalsukh Malvania
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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सिरिजिणेसरसूरिविरइओ इय अम्ह निसासेसे कुवियपसुत्ताण रइसमारंभे । ता झत्ति कुक्कुडरवो निसामिओ वज्जपडहो व्य ॥५८३॥ दिवसमुहगयसमुम्मूलियाई उड्डीणससिविहंगाए । धवलाई गलंति निसालयाए नक्खत्तकुसुमाइं ॥५८४॥ पाउं जोन्हामइरं जामिणिविलयाण फलिहचसओ व्व । मुक्को नहाहि निवडइ निलोणमयमहुयरो चंदो ॥५८५॥ सो अस्थमयइ [य] ससी मणे वहंतो व्व लंछणमिसेण । मयणाहिसामलिंग(लंगि) निरंतरं रयणिवरतरुणिं ॥५८६॥
४१. अथ सूर्योदयप्रक्रमः नक्खत्तमालिया मह तुमए हरिय त्ति गयणलच्छीए । भणिए जलंतफालं व नवरविं धरइ पुवदिसा ॥५८७।। सब्भासलुत्ततारय ! भुत्तावर (?) मा करेहिं मं छिवसु । अन्नत्थखवियसव्वरि ! नहभूसण ! दिणवइ ! नमो ते ॥५८८॥ उदये पत्ते दोसायरो वि लोयाण हवइ नमणिज्जो । किं पुण न होइ मित्तो जो तमसोम्मूलणं कुणइ ? ॥५८९॥ कमलोयरपरिवसियाई अलिउलाई करेहिं विहडंतो । उक्खणइ व तमबीयाई पिच्छ रोसारुणो सूरो ॥५९०॥ फुरियपयावस्स तुहं सव्वरिउम्मूलणं कुणंतस्स । सोहंति सूर ! महिहरसिरेसु परिसंठिया पाया ॥५९१॥ संपुन्नकोसदंडं जलदुग्गगयं पि दलइ कमलवणं । दिम्मि जम्मि कह सो सूरो मा भुवणमक्कमउ ? ॥५९२॥ इट्टाचुन्नं किरं(?) न मुणइ मसुणायवं परिप्फुरइ । रविणो गयणासिनिसाणएक्ककलओवमं बिंबं ।।५९३॥ तारोसहि समावट्टिऊण कालेण पुव्वमूसाए । दिणयरकणयं सिद्धं उत्तारिज्जइ झलक्कंतं ॥५९४॥ पढमोग्गमंतरेहामत्तं नवमित्तमंडलं सहइ । तकालदिणसमागमपुव्ववहूए नहपयं व ॥५९५॥
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