Book Title: Gaharayankosa
Author(s): Jineshwarsuri, Amrutlal Bhojak, Nagin J Shah, Dalsukh Malvania
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 61
________________ सिरिजिणेसर सूरिविरइओ जलहिविसंघडिएण वि निवसिज्जइ हरसिरम्मि चंदेण । जत्थ गया तत्थ गया गुणिणो सीसेण वुज्झति ॥ ५५६ ॥ चंदुच्चतावयंसं पवियंभियसुरहि कुवलयामोहं (यं) । निम्मलतारालोयं पिये व रयणीमुहं चंदो ॥ ५५७ ॥ दीहणालेहिं व पसरिएहिं किरणेहिं पियइ हरिणको । भुवणंतरालसरमज्झठियं समजलोप्पीलं ||५५८॥ दर विहडियवयणविर्णितगंधलुद्धालिगणसणाहाई । कुमुयाई ससहरक्कंततिमिरभरियाई व फुडंति ॥ ५५९ ॥ सयलेण भुवण परिपायडेण निव्ववियसयललोएण । अकुती नलिणी चे (चि)य वंचिज्जइ संगमं ससिणा ॥ ५६० ॥ गयणतलाए अइनिम्मलस्स चंदस्स फुडियपउमस्स । मियमहुअर पयपष्कंदियस्स जोन्हारओ फुरइ ||५६१॥ जह जह उग्गमइ ससी ईसिपसारियकरो पिययमो व्व । tयणिविलेयाए तह तह सिचयं व तमो समोसर ||५६२ || मित्थमणे भो ! ससहरस्स अइनिम्मला मुहच्छाया । अन्ना व अंतरकलुसियाण एसो च्चिय सहावो ॥५६३ ॥ खत्थो विसया दोसायरो वि परिहरियमित्तवग्गो वि । तहविहु मयं वहेई इय पयडं पेच्छ निलज्जो ॥५६४ ॥ संझायव पल्लवियस्स तारयाकुसुमियस्स नहतरुणो । परिपकफलं व मयंकमंडलं पढममुल्लसियं ॥ ५६५ ॥ ates for ससिमंडलम्मि अह तुच्छलंछणच्छाया म्हाणनिहंसणरेह व्व निसाणवट्टम्मि || ५६६ ॥ तुहिणं सुमंडलमिणं विष्फुरियकलंक कंतिलिविकलियं । तियलोक्कविजयवत्तं (? यंत) व दीसए कुसुमबाणस्स ॥५६७ || अंतोविष्फुरियकलंक कंतिससिमंडलं निसारमणी । बहलमयणाहिसरियं रुप्प [ ? ] कच्चोलयं कुणइ ॥ ५६८ ॥ मासच्छेए जो धाइ सम्मुह सूरमंडलग्गस्स । जइ एरिसो ससको नीसको केरिसो होइ ? ॥५६९॥ १. पियई प्रतिपाठः ॥ २. पष्फुदियस्स प्रतिपाठः ॥ ३. " वणियाए" इति प्रतौ ferquit 11 8. "काम" इति प्रतौ टिप्पणी ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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