Book Title: Gaharayankosa
Author(s): Jineshwarsuri, Amrutlal Bhojak, Nagin J Shah, Dalsukh Malvania
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 65
________________ सिरिजिणेसरसूरिविरइओ पंकयनयणेहिंतो कमलिणिदइयाए सूरविरहम्मि । नीहरइ भमरविंदं सकज्जलं बाहसलिलं व ॥६१०॥ मित्तस्स सयासमुहे जड विमुहे कयमुपत्तपरिवारे । कमले च्चिय कमलाए जुज्जइ वासो न अन्नत्थ ॥६११॥ ४३. अथालिमालतिकाप्रक्रमः सा जयइ का वि कीलारइ-मालइमिलिअमार-भमरस्स । पसरंताए जीए रमणिज्जं तिहुअणुज्जाणं ॥६१२॥ वियसइ मालइकलिया चंपिज्जंती वि तरुणभमरेहिं । नूणं पियविहियं असुहयं पि सव्वं सुहावेइ ॥ ६१३ ॥ अइवियसिया कुणंती सव्वंगसमप्पणं पि सयवत्ती । तह विन सा जह जाई रुच्चइ छेयस्स भमरस्स ॥ ६१४॥ मन्ने न मयं न सस ससहरमज्झम्मि महुअरो एसो । मालइविरहमहानलतत्तो पत्तो सुधाकुंडे ॥ ६१५॥ रे भमर ! तए मुक्का महुमासवसंगएण जं जाई । पावेण तेण नूणं जायं कसिणत्तणं तुज्झ ॥ ६१६ ॥ उज्जाण(णे) वियसियजाइगंधधायंतछप्पहनिहेण । गुलियाधणुखेल्लिरवम्महस्स गुलिया समोड्डति ॥ ६१७ ॥ महमासवियसियाए माहवियाए पयंसि पडिलग्गं । दळूण अलिजुयाणं रोसेण न वियसए जाई ॥ ६१८ ॥ वसिऊण तह य सह कुमुइणीए गोसे समागओ भमरो। कलवयणो जाइपियामुहम्मि ओसंसुयं फुसइ ॥ ६१९ ॥ दियहे दियहे जं अहियकालिया होइ अलिजुआणस्स । तं मन्ने मणपज्जलियजाइविरहग्गिधृवेण ॥ ६२० ॥ अइकोमलं ति न रमइ, मुयइ न राएण मालईकलियं । नो घडइ नेय विहडइ पिम्मेण विडंबिओ भमरो ॥ ६२१॥ सहइ दरदलियमालइपरिमलमत्तालितरलरिंछोली। उज्जाणे कीलिरमत्तमारकरिदाणरेह व्व ॥ ६२२ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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