Book Title: Gaharayankosa
Author(s): Jineshwarsuri, Amrutlal Bhojak, Nagin J Shah, Dalsukh Malvania
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 45
________________ सिरिजिणेसरसूरिविरइओ उद्धंधेलयं छायाविवज्जियं नट्ठचित्तबुहरहियं । अणुहरइ उवलजुन्नेउलस्स(?) जं माणुसं रत्तं ॥३५०॥ थेकेण वि विणएणं पुरिसा महिलासु जह पसीयंति । न तहा महिला पुरिसेसु कढिणहियया जओ नीया ॥३५१॥ दाणेण तं न, विणएण तं नं, रूवेण तं न सोहग्गं । परमपराहअ(१)विसंठुलाहिं जं फुरइ वायाहिं ॥३५२॥ जं नम्मयाए विहिओ विझं मोत्तण जलनिहीसंगो । तं नृणं रमणीओ सलूणपुरिसेसु रच्चंति ॥३५३॥ २७. अथ नयनप्रक्रमः परपुरपवेसविन्नाणलाह सुहय ! सिक्खियं कत्थ ? । जेण पविट्ठो हियए पढम चिय दंसणे मज्झ ॥३५४॥ पायडियनेहसम्भावविभमं कीए जह अहं दिहो। संवरणवावडाए अन्नो वि जणो तह च्चेय ॥३५५।। हिययडिया वियंभइ अम्हाणं कंठधारिणी दइया । इयरमहिलाहिं मुक्का नयणसरा जं न लग्गति ॥३५६॥ सामाइ नयणसोत्ते मा जाणह तारओ त्ति डसणत्थं । मयणभुयंगो एसो बंधिय भोयं ठिओ एसो ॥३५७॥ एको वि कालसारो न देइ गंतु पयाहिणवलंतो । किं पुण वाहाउलियं लोयणजुयलं पिययमाए ? ॥३५८॥ नूणं तिणयणभयकयरमणीरूवेण वियरइ अणंगो । अन्नह कह नयणसरेहिं ससिमुही भिंदइ जुवाणे ? ॥३५९॥ ता चक्खुरायपरिपीडियाण इत्थीण सहि ! मुहं कत्तो ? । जा पियदंसणसलिलं पीयं न हु नयणपुडएहिं ॥३६०॥ परिओसवियसिएहिं भणियं अच्छीहिं तेण जणमज्झे । पडिवन्नं तीइ वि उव्वमंतसेएहिं अंगेहिं ॥३६१॥ १. धवलयं प्रतौ ॥ २. न, वि रूवेण प्रतौ ॥ ३. “केहिं पिओ, सरलेहिं सज्जणो, वरगुणेहिं मज्झत्थो । रोसारुणेहिं पिसुणो, णयणाण चठव्विहो भंगो ॥१॥" इति प्रती टिप्पणी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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