Book Title: Gaharayankosa
Author(s): Jineshwarsuri, Amrutlal Bhojak, Nagin J Shah, Dalsukh Malvania
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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माहारयणकोसो अमयमइया वि बाला करेइ कलिमलय(१मयण)दाहमुच्छाअ । पिच्छंता किं न करइ नयणाई विसालयाई से ? ॥३६२॥ ईसा-मच्छररहिएहि निक्यिारेहि मामि ! अच्छीहिं । इन् िजणो[25]जणं पिव नियच्छए, कह न झिज्झामो ? ॥३६३॥ पियहोत्तं जाण विलासिणीण लीलाफुरंतपम्हाइं । उइंति व तरलियपक्खसंपुडग्गाइं अच्छीइं ॥३६४॥ नयणाइं सवाणियपत्तलाई परपुरिसजीयहरणाई । असियसियाई व मुद्धे ! खग्गाई व कं न मारंति ? ॥३६५॥ वरतरुणिनयणपरिसंठियस्स जं कज्जलस्स माहप्पं । दीवयसिहासु न तहा ठाणेसु गुणा विवड्डंति ॥३६६॥ पियदंसणसरहसमउलियाई जइ से न होंति नयणाई। ता केण केन्नलइयं लक्खिज्जइ कुवलयं तिस्सा ? ॥३६७॥ हारो सिहीण, सवणाण कुंडलं, तह नियंबकिकिणिया। नयणाण पुणो विहवे वि मंडलं(?णं) कज्जलसलाया ॥३६८॥ अणुरायतंतुआयड्ढियाई जणसंकुले वि नयणाई। वलिऊण सणियसणियं जत्थ पिओ तत्थ वच्चंति ॥३६९॥ सुहओ ति जियइ विद्धो, मरइ अविद्धो तहऽच्छिबाणेहिं । इय सिक्खविया केणं अउव्वमेयं धणुव्वेयं ? ॥३७०॥ हरविसमनयणकोवानलेण दड्ढेण तहवि मयणेण । कज्जलमिसेण तरुणीनयणे संकामिओ अप्पा ॥३७१।। नवजोवणाण पिम्मंधलाण मिहुणाण लोयभीयाणं । पच्छन्नं जं नयणेहिं संगमो तं रइरहस्सं ॥३७२॥
२८. अथ स्नेहप्रक्रमः एक्कं चिय सलहिज्जइ दिणेस-दिस(१य)हाण नेहनिव्वहणं । आजम्ममेक्कमेक्केहिं जेहिं विरहो च्चिय न दिट्ठो ॥३७३॥ १. 'कन्नकलिय' इति लिखितपाठं संशोध्य 'कन्नलइयं' इति पाठः प्रतिसंशोधकेन कृतोऽस्ति ।।
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