Book Title: Gaharayankosa
Author(s): Jineshwarsuri, Amrutlal Bhojak, Nagin J Shah, Dalsukh Malvania
Publisher: L D Indology Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 47
________________ सिरिजिणेसरसूरिविरइओ पियवल्लिविरहियाणं नेहो पत्ताण चेव निव्वडिओ। फिटुंति जइ मयाणं बंभजलद्दाइ नयेणाई ॥३७४॥ सच्चं चिय ससिणेहो सो सुहओ पियसहीओ ! जं अम्ह । ज्झत्ति परिपंडुराइं तेण विणा होति अंगाई ॥३७५॥ जइ न झुलुकिज्जतो रूसणयदवेण मामि ! मिहुणाणं । खंखरसिणेहदब्भो ता कहणु पुणन्नवीह(हों)तो ? ॥३७६॥ भुंजसु सिणेहजुत्तं कत्तो लोणं कुगामरट्टम्मि?। सुहय ! सलोणेण वि किं व तेण नेहो जहिं नत्थि ? ॥३७७॥ मामि ! सरिसऽक्खराण वि अस्थि विसेसो पयंपियव्वाण । नेहभणियाण अन्नो, अन्नो उवरोहभणियाण ॥३७८॥ ताव य पुत्ति ! छइल्लो जाव न नेहस्स गोयरे पडइ। नेहेण नवरि छेयत्तणस्स मूला खणिज्जंति ॥३७९॥ मह मणवल्ली तुह वयणमंडवे निब्भरं समल्लीणा । रक्खिज्जसु सुक्कंती, सिंचिज्जसु नेहसलिलेण ॥३८०॥ एक्काए नवरि नेहो पयासिओ तिहुयणम्मि जोन्हाए । जा शीणइ झीणे ससहरम्मि वड्ढइ अ वड्ढं ते ॥३८१॥ मयवहण ! मह निमित्तं जं निस(?य)सि निसंस ! कं नियंतीयं (?)। तं मन्ने सुहजीविरनेहस्स न गोयरे पडिओ ॥३८२॥ रणरणयरुज्जदुच्चल्लएहिं(?) नच्चइ नडो व्य हयलोओ। विरहे मरणेण विणा सिणेहरेहा न निवडइ ॥३८॥ समचिंताइ वि घरिणीए भत्तुणा सह इमो विसंवाओ। सो 'सामिणि' त्ति तं मुणइ, 'किंकरी' सा वि अप्पाणं ॥३८४॥ अणुराओ जस्स जहिं तेणं चिय हिययनिव्वुई तस्स । मेहसलिले हिं तिप्पइ बप्पीहो, न सरसलिलेहिं ॥३८५॥ पुभिमससि व्व छिज्जइ अणुदियहं सुयणु ! खलयणसिणेहो । पिच्छह सुयणाण पुणो बीयाचंदस्स अणुहरइ ॥३८६॥ १. 'नयणाई' इत्येतदुपरि 'वसणाई' इति शोधकलिखितः पाठः ॥ २. रयणरणय प्रतिपाठः ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122