Book Title: Gaharayankosa
Author(s): Jineshwarsuri, Amrutlal Bhojak, Nagin J Shah, Dalsukh Malvania
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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सिरिजिणेसरसूरिविरहओ हरचितए वि चित्ते चित्तभवो तीए कह समुप्पण्णो ?। तं पुण बिउणियचित्तो अचित्तजम्मा कह जाओ? ॥४०१॥ जइ सो म एइ मह मंदिरम्मि ता दुइ ! अहाही कोस । सो होही मज्झ पिओ जो तुज्झ न खंडए वयमं ॥४०॥ सा तुज्झ कए गयमयविलेवणा तह वणिक्कसाहारा । जाया निद्दय ! जाया मासाहारा पुलिंदि व्व ॥४०३॥ जो तीए अहरराओ रत्तिं उवासिओ पिययमेण । सो च्चिय मोसे दीसइ सवत्तिवयणेसु संकतो ॥४०४॥ सा दियहं चिय पेच्छइ पडिमावडियाई दप्पणेयलम्मि । एएहिं तुमं दिट्ठो ति तुज्झ विरहम्मि अच्छोहिं ॥४०५॥ सब्भावसिणेहनिवेइरीए जीए तुमं न पत्तीणो । सा सुहय ! पढमदुई रुयइ विलक्ख व्व से दिट्ठी । ४०६॥
__ अथ प्रेमप्रेक्रमः न मुयंति गाढलग्गं खणं पि न धरति सिढिलयं ते तु । पिम्मं निम्मोयं पिव जयम्मि जे ते च्चिय भुयंगां ॥४०॥ पढमारंभे मणहरघणलग्गमणेयरायरमणिज्जं । पिम्मं सुरिंदचावं व चंचलं अत्तिं वोलेइ ॥४०८॥ पिम्मस्स विरोहियसैधियस्सं पच्चक्खदिदीसस्स । उदयस्स व तावियसीयलस्स विरसो रसो होइ ॥४०९॥ फुट्टतेण वि हियएण मामि ! कह निरिज्जए तम्मि । अदाए पडिबिंबं व जम्मि दुक्खा न सकमइ ॥४१॥ कइयवरहियं पिम्मं णत्थि [य] किर मामि ! माणुसे लौए । अह होन(ज्जा) विरही कस्स होइ ? विरही व को जियइ ॥४११॥ संतावियं न विहडइ पिम्मं नवजच्चकंचणच्छायं । वड्ढइ कलाहिं अंहियं मिहुणाणं माणकसव? ॥४१२॥ जत्थ न दुरालोयणपसयच्छी दोहपउमनालेहिं । पिच्छइ अणुरायरसं अणवरयं तत्थ किं पिम्मं ? ॥४१३॥
१. "अह पिम्म को विरहो ? अह विरहो को उ जीएइ ।।" अयमपि पाठः समीचीनः ।" इति प्रतौ टिप्पणी ।। २. विरहि व्व को प्रतौ ॥
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