Book Title: Gaharayankosa
Author(s): Jineshwarsuri, Amrutlal Bhojak, Nagin J Shah, Dalsukh Malvania
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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गाहारयणकोसो
२९. अथ दतीप्रक्रमः निवससि दुक्खसहाया मह हियए, सो पिओ तहिं चेव । सहि ! मुणह दीवि तुब्भे परमत्थं किंचि संदिसिमो ॥३८७॥ निति तुहविरहहुयवहपलीविया तीए हिययभवणाी । डझंत व्व तुरंता पैल्लावेल्लीए नीसासा ॥३८८॥ अन्नत्थ पेसिएण वि आयन्नापूरिएण तणुमज्झा । अकलेण वि तुज्य सरेण सुहय ! मारिजइ वराई ॥३८९॥ तूमि(?नूमि)ति जे पहुत्तं, कुवियं दास व जे पसायति । ते च्चिय महिलाण पिया, सेसा सामि च्चिय वराया ॥३९०॥ महिलासहस्सभरिए तुह हियए सुहय ! सा अमायंती । पडिदिणमणन्नकम्मा अंगं तणुअं पि तणुएइ ॥३९१॥ विरहग्गितावतविए हियए वससि त्ति तीए सुयणो सि । ससिमणिसमे वि निवसइ तुह हियए नो अणज्जा सा ॥३९२॥ सरसा वि हु सुसइ च्चिय, जाणइ दुक्खाई मूढहियया वि । रत्ता वि पंडुर च्चिय जाया वट्टइ तुह विओए ॥३९३॥ सोक्खाइं तुमाहितो, तत्तो निद्दा, तुमाहि मे जीयं । पियसंगमं तईतो, जं जाणिसि तं कुणिज्जासु ॥३९४॥ 'जियउत्ति पयसणाई तुह गोतं परियणाहिं सोउमणा । छिक्काकरण बहुसो नासाविवरे तणं छिवइ ॥३९५॥ तइ सुहय ! अदीसंते तिस्सा अच्छीहि कन्नलग्गे(ग्गा)हिं । दिन्नं घोलिरबाहाहि पाणियं दंसणसुहाण ॥९६॥ बहुसो वि कहिज्जतं तुह वयणं मज्झ हत्थसंदिडं । 'न सुयं'ति जंपमाणी 'पुणरुत्तऽसुयं कुणइ अज्जा ॥३९७॥ 'एहिसि तुमति निमिसं व जग्गियं जामिणीए पढमद्धं । सेसं संतावपरव्वसाए वरिस व वोलीणं ॥३९८॥ धरिओ धरिओ वियलइ उवएसो से सहीहि दिज्जंतो। मयरद्धयबाणपहारजजरे तीए हिययम्मि ॥३९९॥ काला कप्पा वि गया संझादूईए संचरंतीए । दिवसस्स निसाए समं न सक्किओ संगमो काउं ॥४०॥ १. "पुनरुक्काश्रुतम्" इति प्रतौ टिप्पणी ।
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