Book Title: Gaharayankosa
Author(s): Jineshwarsuri, Amrutlal Bhojak, Nagin J Shah, Dalsukh Malvania
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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गाहारयणकोसो
३१. अथ मानप्रक्रमः 'माणो' इमाई दोअक्खराइं 'पियसंगमो' त्ति बहुयाई । थोवं जिप्पइ बहुएहिं एत्थ तुम्हे च्चिय पमाणं ॥४४०॥ अविरयरयकेलिपसंगसोक्खपब्भारईसिकुंठइयं । माणनिसाणयनिसियं होइ पुणो अहिणवं पिम्मं ॥४४१॥ जइया पुणो न दीसइ भणह हले ! कस्स कीरए माणो ? । अह दिम्मि वि माणो ता तस्स पियत्तणं कत्तो ? ॥४४२॥ गाढालिंगणरहसोज्जयर्याम्म दइए लहुं समोसरइ । माणंसिणीण माणो पीलणभीओ व्व हिययाहि ॥४४३॥ माणेण मह मणाओं पुचि निव्वासिओ पिओ मामि !। इहि निव्वासिज्जइ मयणसहारण सो तेण ॥४४४॥ बाहभरभमिरतारं तावियतवणिज्जतुलियगंडयलं । फुरियाहर-नासउडं माणिमाणं पि रमणिज्जं ॥४४५॥ दढमंतुदृमियाइ वि गहिओ दइयम्मि पेच्छह इमोए। ओसरइ वालुयामुट्ठिय व्व माणो सुरसुरंतो ॥४४६॥ जो कहवि सहीहि महं छिदं लहिऊण ठाविओ हियए । सो माणो चोरियकामुय व्व दिट्टे पिए नहो ॥४४७॥ निद्दाभंगो आवंडुरत्तणं दीहरा य नीसासा । जायंति जस्स विरहे तेण समं केरिसो माणो ? ॥४४८॥ पायवडिओ न गणिओ, पियं भणंतो वि अप्पियं भणिओ। वच्चंतो न निरुद्धो, भण कस्स कए कओ माणो ? ॥४४९।। बाहुल्लफुरियगंडाहराए भणियं विलक्खहसिरीए । अज्ज वि किं रूसिज्जइ सतहावत्थं मए पिम्मे ? ॥४५०॥ पणयकुवियाण दोन्ह वि अलियपसुत्ताण माणइत्ताणं । निच्च नरुद्धनीसासदिन्नकन्नाण को मल्लो ? ॥४५१॥ पिडिनिसन्ना वि पिया सणियं सणियं परम्मुहे दइए । दुट्ठरुहिरं व माणं आइद्धइ सिहिणतुंबेहि ॥४५२॥ न वि तह अणालवंती हिययं दूमेइ माणिणी अहियं । जह दूरवियंभियगुरुयदोसमब्भत्थभणियेहिं ॥४५३॥
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