Book Title: Gaharayankosa
Author(s): Jineshwarsuri, Amrutlal Bhojak, Nagin J Shah, Dalsukh Malvania
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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गाहारयणकोसो इन्हि वारेइ जणो तइया मूयल्लिओ कह(हिं) पि गओ । जाहे विसं व जायं सव्वंगपहोलिरं पिम्मं ॥४१४॥ जं दोसेसु निसम्मइ, जं उवएसेहिं तीरए चलिउं । जं च सहए विओयं तं सहि ! पिम्म चिय न होइ ॥४१५॥ आवायमेत्तगरुएहिं मामि कमसो सरंतलहुएहि । घंटानिनायसरिसेहिं लजिमो लोयपिम्मेहिं ॥४१६।। के धना जे सुमुहि(? ही)तरुणीणं पिम्मनिम्मले हियए । पेच्छंति दप्पणम्मि व संकंतं अत्तणो रूवं ॥४१७॥ अइवल्लहं पि न उ सरइ माणुसं देस-कालअंतरियं । वल्लीए समं पिम्मं जं आसन्नं तहिं चढइ ॥४१८॥ समसुख-दुक्खं संवड्ढियाण कालेण रूढपिम्माणं । मिहु एग ण मरइ जं तं खु जीयइ परं मयं होई ॥४१९॥ सहि ! एरिस च्चिय गई मा रुव्वउ तंसवलियमुहइंदं । एयाण बालवालंकितंतुकुडिलाण पिम्माण ॥४२०॥ जा न चलइ ता अमयं, चलियं पिम्मं विसं विसेसेइ । दिट्ट सुयं च कत्थ वि मयच्छि ! विसगब्भियं अमयं ? ॥४२१॥ संतावियाइं अम्हे अमुणा पिम्मेण वंकविसमेण । दुग्घडियमंचएण व खणे खणे पायवडणेण ॥४२२॥ दढनेहनालपसरियसब्भावदलस्स रइसुयंधस्स । पेमोप्पलस्स मुद्दे ! माणतुसार च्चिय विणासो ॥४२३॥ जाए माणप्पसरे फिट्टे नेहे गयम्मि सम्भावे । अब्भत्थणाए पिम्मं कीरंतं केरिसं होइ ? ॥४२४॥ अन्नं तं सयचलियं पि मिलइ रसगोलयं व जं पिम्मं । अन्नं मयच्छि ! मुत्ताहलं व भग्गं न संघडइ ॥४२५॥ दाडिमफलं व पिम्मं सकसायं एक्कवारियं होइ । जाव न बीयं रत्तं न ताव सरसत्तणं कुणइ ॥४२६॥
१. एतदशुद्धोत्तरार्द्धस्थाने “मिहुणाण मरइ एगे, जं जीयइ तं मयं होइ" इत्येतद्भावयोतकमुत्तराद्धं सम्भवति ।। २. एतदनन्तरम् "गाथा ४०० ।" इति प्रतौ ।
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