Book Title: Gaharayankosa
Author(s): Jineshwarsuri, Amrutlal Bhojak, Nagin J Shah, Dalsukh Malvania
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 44
________________ गाहारयणकोसो सा नु(?तु)ह हियए तं मह निसंस ! ईय(१इय) वीयभारमक्कंतं । पत्तिय परिणयदाडिमफल व फुडिही फुडं हिययं ॥३३५॥ दु(वु)ब्भसि पियाए समं(म्मं) पुच्छिसि तं तहवि कीस किसिआऽसि । अहियभरेण अयाणुय ! मुयइ बइल्लो वि अंगाई ॥३३६॥ नवसरसदंतमंडलकवोलपडिमागओ मयच्छीए । अंतो सिंदूरियसंखवन्नकरणिं वहइ चंदो ॥३३७॥ अंघोअणयं सुहकंखिरीए अकयं कयं भणंतीए । सरलसहावो वि पिओ अविणयमग्गं बला नीओ ॥३३८॥ लज्जा चत्ता, सीलं च खंडियं, अयसघोसणा दिण्णा । अस्स करण कयाइं सो चेव जणो[25]जणो जाओ ॥३३९॥ नहरेहा जीए उरम्मि सहइ रोमंचखंडियनिवेसा । खणविरहभीरुणो सीवणि व्व फुडियस्स हिययस्स ॥३४०॥ एका अमावस च्चिय भुवणे सोहग्गगव्वमुव्वहइ । जस्सेक्कसंगमाओ कलाहिं परिवड्ढए चंदो ॥३४१॥ दुक्खं दितो वि मुहं जण(णे)इ जो जस्स वल्लहो होइ । दइयनहदूसियाण वि वड्ढेइ सिहीण रोमंचो ॥३४२॥ भणुराउ च्चिय दइउ(?या)सु घडइ सोहग्गचंगिमगुणाई । चंदो च्चिय जणइ मणीसु कढिणहियएसु सलिलाइं ॥३४३॥ एकत्तो कमलवणं अन्नत्तो तीरसंठिया बाला । कमलाण लोयणाण य भमेण परिभमइ रिंछोली ॥३४४॥ वरतरुणिघोरघणसिहिणपिल्लिओ हार! दोलसे कीस ? । कुमुहेहि समं गुणवंतयाण संगो च्चिय विरुद्धो ॥३४५॥ चंदो वि जाण दासो तरुणिकवोलाण ताण किं भणिमो ? । सोहंति ते वि जेहिं ताण नामो वल्लहनराणं ॥३४६॥ रोसेण विजपंती जं जणइ महसवं हिययदइया। नेहेण वि जंपंता तं कत्तो बंधवा अवरे ? ॥३४७॥ चंगतं दिव्ववसेण नत्थि जइ तत्थ किं वयं भणिमो ?। रसलडहत्तं उण वहउ(?इ) कोइ जइ(१ह) वहह(?इ) दक्खाए ॥३४८॥ जं किर उल्लसइ ददं अणुरायपरम्मुहेसु अणुराओ । तं चेय महविसं उण महणभवं तस्स पडिबिंवं ॥३४९॥ १. अघोअणणय सुह प्रतौ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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