Book Title: Gaharayankosa
Author(s): Jineshwarsuri, Amrutlal Bhojak, Nagin J Shah, Dalsukh Malvania
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 42
________________ गाहारयणकोसो सोहंति जीए सवणा नयणनईपवहरयह यप्पसरा । तरुणमणहरिणबंधे मयणमहावाहपास न ॥३१०॥ अद्धिदुबिंदु(१ब)सरिसं निडालफलेयं विहाय निप्पंकं । जोव्वणसिरीए मुहदप्पणं व विहिणा विणिम्मवियं ॥३११॥ उकीरिउं मयंकं विहिणा मुहमंडलम्मि निम्मविए । तच्छियलंछणवल्लरिकरणिं कुरलावली कुणई ॥३१२॥ पिटिट्टिएण रेहइ मुद्धा पिहलेण चिउरभारेण । नियमुहमयंकनिज्जिअभीषण व तिमिरनिवहेण ॥३१३॥ मयणग्गिणो व्व धूम, मोहणपिच्छं व लोयदिट्टीए । जोव्वणधयं व मुद्धा वहइ सुयंधं चिउरभारं ॥३१४॥ पाउससिरि व्व उन्नयपओहरा, धणुलय व्य गुणकलिया । नयर व्व दीहरच्छा बालासुकहा इइ महत्था ॥३१५॥ एक्को वि पएसो अवयवाण सो नत्थि सामलिं(लं)गीए । संवट्टियचा [? ] वक्खंति तरुणीओ ॥३१६॥ तइयऽच्छिसिहिसिहाभासुरेण भुवणे हरेण अक्कंते । अहरहाणे तुह सुयणु ! वसइ निरुवद्दवमणंगो ॥३१७॥ तह पावियखंडण-पीलणो वि जो वइइ निब्भरं रायं । जइ सो वि होइ अहरो को उण तुह उत्तरो सुयणु ! ॥३१८॥ जइ कोट्टिमो सि उज्जयसयलतिहीचंददसणसयण्हो । ता [? ] करो जत्थ अणंगी(गो) न वीसमइ ॥३१९॥ अमएकनिहीणं तरई को णु जुवईण वन्निउं महिमं ? । जाण पभावे सहलत्तमेइ सक्कस्स वि समिद्धी ॥३२०॥ २६. अथ शङ्गारप्रक्रमः सुंद(?दे)रतुलियकंदप्प ! तुज्ज्ञ अणविग्धदसणमणाओ । परिवाडिनिमिसणं लोयणेहिं सिक्खंति तरुणीओ ॥३२१॥ १. "लयं ति विहाय' प्रतिपाठः ।। २. 'उक्कोरिऊण म' प्रतिपाठः ॥ ३ एतदनन्तरं "गाथा ३००॥” इति प्रतौ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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