Book Title: Gaharayankosa
Author(s): Jineshwarsuri, Amrutlal Bhojak, Nagin J Shah, Dalsukh Malvania
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 43
________________ ता उम्मोइते .... .... .... सिरिजिणेसरसूरिविरहओ .... .... ... ..." .... .... .... .... ॥३२२॥ .... .... .... .... .... .... .... ॥३२३॥ ..... .... .... .... .... .... .... कसिण कंचुयं पेच्छ गोरिमुहं ॥३२४॥ रेहइ कररुहरेहा मुद्धाहिययम्मि पियकरोल्लिहिया । मयणनवमंदिरारंभदोरिया धाउरत्त व्य ॥३२५॥ वंकपरिसंकियाणं वंकुल्लावाण वंकदिट्ठीणं । को माइ ! उवज्झाओ अन्नो नवजोव्वणाहिंतो ? ॥३२६॥ मा हु नियच्छसु एवं एसा अइजोइया रुयावेइ । बाला कप्पूरम(स)लाइय व्य अच्छीसु लग्गंती ॥३२७॥ किं सच्चं चिय अहरो पियाण बहु रमइ मतु(?मन्नु)दुक्खेणं । तत्थ मणोहरलवियस्स जीय साओ अणंगस्स ॥३२८॥ सा तस्स मियंकस्स व करफंससमुग्गएण सेएण । ससिमणिघडिया वा(धी)उल्लिय ब्व वारीमई जाया ॥३२९॥ अमुणियविसेसपसरंततोस-रोसेसु भूसियं तिस्सा । चाटुम्मि विप्पियम्मि वि एक्कावत्थं मुहं सरिमो ॥३३०॥ वर-वहुयाणं हत्था सज्झसपसरंतसेयसलिलेण । तक्खणघडिया अग्धं व दिति मयणस्स इंतस्स ॥३३१॥ दीसंतो नयणमहो निव्वुइजणभो करेहि वि छिवंतो । अब्भत्थिो न लब्भइ चंदो व्व पिओ कलानिलओ ॥३३२॥ हत्थप्फंसेण वि पिययमस्स जा होइ सुक्खसंपत्ती। सा सरहसगत्तालिंगणेण इयरे जणे कत्तो ? ॥३३३॥ अवियण्हपिच्छणिज्जं समसुह-दुक्खं विइन्नसम्भावं । अन्नोन्नहिययलग्गं पुन्नेहि जणो जणं लहइ ॥३३४॥ १. "यथाप्रति" इति प्रतौ टिप्पणी, अनेनेदं ज्ञायते-लेखकप्रमादाद् इतोऽ पाठो न गलितः किन्तु लेखकपूर्वादशे पाठभ्रंश आसीत् ॥ २. हरपलवियस्स प्रतौ ॥ ३. “पुत्रिका" इति प्रती टिप्पणी ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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